अजित पवार की राजनीति की अनोखी कहानी: वॉशरूम में 10 मिनट की कॉल ने बदल दिया महाराष्ट्र का राजनीतिक खेल

दैनिक सांध्य बन्धु मुंबई। महाराष्ट्र की राजनीति में अजित पवार का नाम आज एक महत्वपूर्ण और दिलचस्प शख्सियत के रूप में जाना जाता है। पांच बार उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके अजित पवार की कहानी उतार-चढ़ाव और विवादों से भरी रही है।

22 नवंबर 2019 की शाम, जब कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना के वरिष्ठ नेता सरकार गठन के लिए बैठक में जुटे थे, अजित पवार वॉशरूम के बहाने से बैठक से बाहर गए और करीब 10 मिनट तक फोन पर बात की। इसके बाद वे बदले हुए अंदाज में लौटे। किसी को अंदाजा नहीं था कि अगली सुबह अजित पवार राज्यपाल के सामने बीजेपी के साथ मिलकर डिप्टी सीएम पद की शपथ लेंगे। 23 नवंबर की सुबह देवेंद्र फडणवीस के साथ अजित पवार ने शपथ ली और महाराष्ट्र का राजनीतिक समीकरण पूरी तरह से बदल गया।

बारामती के पवार परिवार में राजनीति और सत्ता का इतिहास पुराना है। अजित पवार, शरद पवार के भतीजे हैं, जिनका बचपन से अपने चाचा के प्रति आदर और डर का मिश्रण रहा है। शरद पवार के लिए अजित हमेशा उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी माने जाते थे, लेकिन चचेरी बहन सुप्रिया सुले के राजनीति में आने से उनके रिश्तों में दरार आ गई। 2023 में अजित ने पार्टी से अलग होकर बीजेपी के समर्थन से डिप्टी सीएम पद ग्रहण किया, जिसने एनसीपी में बंटवारे की स्थिति पैदा कर दी।

अजित पवार अपने बयानों के कारण भी विवादों में रहे हैं। 2013 में उनके एक बयान "क्या पेशाब करके बांध भरें?" ने उन्हें काफी आलोचना झेलनी पड़ी। इसके अलावा, 2014 के चुनाव प्रचार में उन्होंने गांव वालों को पानी रोकने की धमकी दी थी।

2023 में शरद पवार के इस्तीफे और उसे वापस लेने की घटनाओं से नाराज होकर अजित ने फिर से बगावत की और अपने समर्थक विधायकों के साथ शिंदे सरकार में शामिल हो गए। इस राजनीतिक कदम ने एक बार फिर महाराष्ट्र की राजनीति में हलचल मचा दी।

अजित और उनकी बहन सुप्रिया सुले के बीच पारिवारिक संबंध भले ही मधुर हों, लेकिन राजनीति ने कई बार इन संबंधों में खटास पैदा की है। 2024 के लोकसभा चुनाव में अजित ने अपनी पत्नी सुनेत्रा को सुप्रिया के खिलाफ चुनाव में खड़ा किया, लेकिन बाद में इसे एक बड़ी गलती माना।

अजित पवार की राजनीतिक यात्रा असाधारण रही है, जिसमें वे कई बार सत्ता के करीब रहे और कई बार विवादों में घिरे। उनकी कहानी उन राजनीतिक उलटफेरों की मिसाल है, जो वॉशरूम की 10 मिनट की कॉल से लेकर पार्टी के बंटवारे तक विस्तारित है।

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