दैनिक सांध्य बन्धु जबलपुर। कभी-कभी लगता है कि राजनीति में कुछ लोगों का जन्म ही ना खुद कुछ करना, ना किसी को करने देना मिशन के तहत हुआ है। जबलपुर कांग्रेस में इन दिनों इसी मिशन के कई स्वयंभू प्रणेता सक्रिय हैं। जिनके पास न तो जनता का भरोसा है, न जमीनी आंदोलन का हौसला, मगर आत्ममुग्धता इतनी कि आईने के सामने खड़े होकर खुद की ही ताजपोशी कर दें। कांग्रेस पार्टी ने समय-समय पर इन्हें आदर-सम्मान दिया, नगर निगम चुनाव में प्रत्याशियों के चयन की जिम्मेदारियाँ सौंपीं, मगर ये हर मोर्चे पर शून्य साबित हुए।
खुद की विफलता के अहसास ने इन्हें इतना नकारात्मक बना दिया है कि अब दूसरों के प्रयासों में मीन-मेख निकालना ही इनका पूरा राजनीतिक एजेंडा बन गया है। काम करे कोई भी, इन्हें दर्द हो जाता है। जैसे किसी और की सफलता इनके अस्तित्व पर हमला हो! और अब कांग्रेस कार्यकर्ता भी इन्हें पहचानने लगे हैं।
वे जान गए हैं कि ये वही नेता हैं जो भाजपा से लड़ने का साहस तो नहीं रखते, लेकिन कांग्रेस पार्टी के भीतर छोटे-छोटे दरबारी युद्धों के महारथी हैं। जहाँ कोई संघर्ष की बात होती है, जहाँ जनता के मुद्दे उठाने की जरूरत होती है, वहाँ ये लोग चुप्पी साधे रहते हैं, लेकिन जैसे ही कैमरों की चमक दिखती है, निजी स्वार्थ की पताका फहराते हुए सबसे आगे नजर आते हैं।
इनका हर आंदोलन, हर नारा, हर भाषण दरअसल आत्मप्रचार का एक जरिया मात्र है। किसानों का दर्द हो या नौजवानों की पीड़ा, इनके लिए सब महज एक 'इवेंट मैनेजमेंट' का हिस्सा है। असल में तो ये वही लोग हैं जिन्हें जनता भी कई चुनावों से नकार चुकी है लेकिन फिर भी ये अपने आप को नेता मानने की बीमारी से उबर नहीं पाए हैं। आज जब कांग्रेस को एकजुट हो कर जमीनी हक की लड़ाई चाहिए, तब ये लोग आत्ममुग्धता की विष बेल को सींच रहे हैं।
कांग्रेस पार्टी टूटे या जनमत खिसके, इन्हें तो बस अपनी कुर्सी के चारों ओर हवन करते रहना है। समय आ गया है कि कांग्रेस कार्यकर्ता अब इन नकारात्मक आत्माओं को पहचानें और संघर्ष की असली आत्मा को फिर से जगाएं। वरना जिस रफ्तार से ये नकारात्मकता बढ़ रही है, वह दिन दूर नहीं जब अच्छे इरादे भी इनके 'आत्ममुग्ध संगठन' की भेंट चढ़ जाएंगे।