दैनिक सांध्य बन्धु जबलपुर। नगर भाजपा संगठन ने 15 दिसंबर की समय सीमा तक शहर के 18 में से 17 मंडलों के अध्यक्ष और जिला प्रतिनिधियों की घोषणा कर दी है। हालांकि, विवेकानंद मंडल को लेकर पेच फंस गया है। इस मंडल में अध्यक्ष और जिला प्रतिनिधि के नाम पर सहमति नहीं बन पाई है। यह मंडल जबलपुर सांसद का गृह मंडल होने के साथ ही क्षेत्रीय विधायक के लिए भी खासा महत्वपूर्ण है। विवेकानंद मंडल के अध्यक्ष और प्रतिनिधि को लेकर सामंजस्य की कमी के चलते फिलहाल निर्णय होल्ड पर रखा गया है। भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच इस देरी को लेकर आक्रोश है। पार्टी के नियमों के तहत मंडल अध्यक्ष की आयु सीमा 45 वर्ष तय की गई है, लेकिन जारी सूची में तीन मंडल अध्यक्ष 45 वर्ष से अधिक उम्र के बताए जा रहे हैं। रायगढ़ विवाद की तरह यहां भी बदलाव की संभावना जताई जा रही है। मंडल अध्यक्षों की घोषणा के बाद अब नगर अध्यक्ष के चयन को लेकर बहस तेज हो गई है। पार्टी के भीतर गुटबाजी इस चुनाव को और पेचीदा बना रही है।
विश्लेषकों का मानना है कि किसी एक नाम पर आम सहमति बनाना मुश्किल होगा। ऐसे में पार्टी संभवतः किसी विधायक को अध्यक्ष बनाने की रणनीति अपनाएगी, लेकिन विरोधी गुट इस प्रक्रिया को फिलहाल टालने का प्रयास करेगा। सूत्रों के अनुसार, विवेकानंद मंडल में संघ का प्रभाव मजबूत है। ऐसे में संघ समर्थित व्यक्ति को अध्यक्ष बनाने की कोशिशें हो रही हैं। इस मंडल में एक नाम मैदानी कार्यकर्ता का है, जबकि दूसरा नाम विधायक की पसंद का। विधायक की पसंद के नाम को लेकर विवाद बढ़ने से मामला और उलझ गया है। भाजपा संगठन और विधायकों के बीच खींचतान लगातार जारी है। संगठन का कहना है कि नियुक्तियां विधायकों की रायशुमारी के बाद हो रही हैं, जबकि विधायक इसे संगठन की योजना बता रहे हैं। अब देखना यह होगा कि नगर अध्यक्ष के चयन में संगठन की चलती है या विधायकों की।
क्या होगा अगला कदम ?
नगर अध्यक्ष के लिए फिलहाल सभी विधायकों के समर्थकों के नाम चर्चा में हैं। पार्टी के अंदरूनी हालात और गुटबाजी को देखते हुए आने वाले दिनों में विवेकानंद मंडल का फैसला न केवल संगठन के भीतर शक्ति संतुलन को तय करेगा, बल्कि नगर अध्यक्ष की राह को भी प्रभावित करेगा।