(व्यंग्य) बीच का रास्ता

दैनिक सांध्य बन्धु/ महेश छलोत्रे। बीच का रास्ता एक ऐसा रास्ता है जिसका रास्तों से कोई रिश्ता नहीं है, आमतौर पर यह कोर्ट-कचहरी, सरकारी दफ्तरों से लेकर अस्पतालों तक में पाया जाता है और बीच का रास्ता बताने वाले भी अधिकारी, कर्मचारी से लेकर चपरासी, यहां तक की किसी अस्पताल के प्रबंधक के रूप में भी आपको मिल जाएंगे.

बीच का रास्ता सामान्यतः लाभार्थी और रास्ता बताने वाले दोनों पक्षों के लिए लाभदायक होता है, हालांकि इससे देश का हित नहीं होता लेकिन इस देश में ऐसा मान लिया गया है कि यह सब के लिए हितकारी है और जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है कि इसे भ्रष्टाचार की श्रेणी में भी नहीं रखा जा सकता क्योंकि भ्रष्टाचार रास्तों पर नहीं बल्कि चोरी छुपे होता है. बीच के रास्ते की अलग-अलग श्रेणियां है, किसी छोटी-मोटी फाइल को साहब के टेबल पर पहुंचाने, मुंशी से मुकदमे की तारीख बड़वाने, साहब से फाइल पर दस्तखत करवाने से लेकर किसी चिकित्सालय में चिकित्सा का स्वरूप बदलवाने तक की कई श्रेणियों में इसे विभाजित किया जा सकता है, चूंकि देश बड़ा है अतः श्रेणियां भी ज्यादा हैं. आमतौर पर बड़े लोगों के लिए बीच का रास्ता सुगम होता है और वे इसे अपनी मर्जी से चुनते भी हैं क्योंकि उनका लक्ष्य फाइल पर साहब के दस्तखत करवाना, मुकदमे की तारीख बड़वाना, तबादला करवाना या रुकवाना ज्यादा जरूरी होता है, बजाए इसके कि इस रास्ते में भेंट कितनी लगेगी.

यहां तक तो ठीक है आश्चर्य और हैरानी तब होती है जब यह बीच का रास्ता सरकारी दफ्तरों से निकलकर किसी अस्पताल में घुस जाता है और किसी गरीब इंसान के बीमार होने पर कुछ देर पहले उसको दी गई बाईपास सर्जरी की सलाह पर जब वह अपनी जेब दिखाता है तो बीच के रास्ते के रूप में उसको स्टंट डालने की सलाह दी जाती है, तब समझ में आता है कि या तो बाईपास सर्जरी जरूरी नहीं थी या अभी स्टंट डालकर ही जितना जेब में है उतना निकाल लो, क्योंकि यह अभी गया तो फिर लौटे या ना लौटे, यह बहुत ही अमानवीय और पीड़ा दायक है. हालांकि इस क्षेत्र में अभी बीच के रास्ते का चलन कम है लेकिन ये यहां पर भी ये दस्तक दे चुका है.

अक्सर आपने विदेश भ्रमण करके लौटे हुए किसी दोस्त अथवा किसी बड़े नेता से यह कहते हुए जरूर सुना होगा कि वहां पर हर चीज बड़ी अनुशासित है, बहुत तरक्की है, बड़ी साफ सफाई है तो ऐसे मौके पर उससे ये जरूर पूछिएगा कि आप विदेश यात्रा पर गए थे तो इसका मतलब ये स्पष्ट है कि आप टेक्सपेयर भी होंगे जरा अपने दिल पर हाथ रखकर ये बताईए कि क्या आप टैक्स ईमानदारी से जमा करते हैं या उसमे भी कोई बीच का रास्ता अपनाते हैं यदि हां तो आपको अपने देश को कोसकर पराए देश की तारीफ करने का बिल्कुल भी हक नहीं है क्योंकि वहां के लोग आपकी तरह टैक्स चोरी नहीं करते और देश को चलाने के लिए टैक्स भी एक अहम पहलू है, बहरहाल इन सब के प्रति हमारी एक नैतिक जिम्मेदारी है जिसे हमें निभाना अति आवश्यक है.

अंत में बस इतना ही, कि जब तक पूरे देश में बीच के रास्ते के रूप में फल- फूल रही इस अधिकृत संस्कृति पर अंकुश नहीं लगेगा, तब तक भ्रष्टाचार मुक्त भारत का सपना देखना बेमानी है।

Post a Comment

Previous Post Next Post