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संविधानिक संकट और राष्ट्रपति शासन की जरूरत
संविधान के अनुच्छेद 174(1) के तहत, किसी भी राज्य में विधानसभा को छह महीने के भीतर सत्र बुलाना अनिवार्य होता है। मणिपुर में पिछला सत्र 12 अगस्त 2024 को हुआ था, लेकिन सरकार इसे निर्धारित समय-सीमा के भीतर फिर से नहीं बुला पाई। बुधवार को यह समय-सीमा समाप्त हो गई, जिसके चलते संवैधानिक संकट उत्पन्न हो गया और राष्ट्रपति शासन लागू करना पड़ा।
हिंसा और राजनीतिक दबाव के बीच बीरेन सिंह का इस्तीफा
मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने बीते रविवार को राज्यपाल अजय कुमार भल्ला से मुलाकात कर अपना इस्तीफा सौंप दिया। उनका यह निर्णय ऐसे समय में आया जब विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर बहस होनी थी और उन्हें फ्लोर टेस्ट का सामना करना पड़ता। विपक्ष लगातार उन पर हिंसा रोकने में विफल रहने का आरोप लगा रहा था।
कांग्रेस का आरोप: भाजपा को बचाने की कोशिश
मुख्यमंत्री के इस्तीफे के बाद कांग्रेस ने भाजपा पर तीखा हमला बोला। कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने इसे "बहुत देर से लिया गया फैसला" बताया, जबकि लोकसभा में कांग्रेस के उपनेता गौरव गोगोई ने आरोप लगाया कि "भाजपा के पास पूर्वोत्तर राज्य में शांति बहाल करने का कोई रोडमैप नहीं है।"
लीक ऑडियो क्लिप ने बढ़ाया राजनीतिक संकट
मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के इस्तीफे से कुछ दिन पहले एक ऑडियो क्लिप लीक हुई थी, जिसमें उन पर जातीय हिंसा के दौरान मैतेई समूहों को हथियार और गोला-बारूद लूटने की अनुमति देने का आरोप लगाया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस क्लिप की फॉरेंसिक जांच के आदेश दिए थे, जिससे राजनीतिक दबाव और बढ़ गया था।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि "बढ़ते जन दबाव, सुप्रीम कोर्ट की जांच और कांग्रेस द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव ने सरकार को जवाबदेह बनने के लिए मजबूर किया।"
नए नेतृत्व को लेकर मंथन जारी
बीरेन सिंह के इस्तीफे के बाद भाजपा ने नए मुख्यमंत्री के नाम पर विचार करने के लिए बैठकें शुरू कर दी थीं, लेकिन अब राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद नए नेतृत्व को लेकर असमंजस बना हुआ है।
आगे क्या?
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि केंद्र सरकार मणिपुर में शांति बहाल करने के लिए क्या कदम उठाती है और नया नेतृत्व कब तक चुना जाता है। फिलहाल, राज्य में कानून-व्यवस्था की बहाली सबसे बड़ी प्राथमिकता बनी हुई है।