दैनिक सांध्य बन्धु जबलपुर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने मेडिकल छात्रों के भविष्य को लेकर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि डॉक्टरों से बंधुआ मजदूरों की तरह काम नहीं कराया जा सकता। कोर्ट ने राज्य सरकार को सख्त निर्देश देते हुए कहा कि ऐसे सभी छात्रों के दस्तावेज तुरंत लौटाए जाएं, जिन्होंने ग्रामीण सेवा के बॉन्ड को चुनौती दी है।
यह आदेश चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन की डिवीजन बेंच ने उस याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया, जिसमें चिरायु मेडिकल कॉलेज, भोपाल से पोस्ट ग्रेजुएशन कर चुके डॉक्टर वैभव दुबे, पुष्पेंद्र सिंह और पुलकित शर्मा ने ग्रामीण क्षेत्र में 5 साल सेवा देने की अनिवार्यता को चुनौती दी थी।
सीनियर वकील बोले - सेवा का ऐसा बंधन अनुचित
याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट आदित्य संघी ने कोर्ट में दलील दी कि छात्रों से ग्रामीण सेवा के नाम पर जबरन 5 साल तक काम करवाना संविधान के अधिकारों का उल्लंघन है। इसके साथ ही, सेवा न देने की स्थिति में 50 लाख रुपए की भारी भरकम राशि की शर्त उन्हें मानसिक दबाव में डालती है।
छात्रों का भविष्य बाधित न हो
कोर्ट ने साफ किया कि ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टरों की नियुक्ति एक नीति का विषय हो सकता है, लेकिन इसे छात्रों पर जबरन नहीं थोपा जा सकता। कोर्ट ने आदेश दिया कि राज्य सरकार तुरंत छात्रों के सभी मूल दस्तावेज उन्हें वापस करे, ताकि उनका शैक्षणिक और व्यावसायिक भविष्य प्रभावित न हो।