MP के जंगलों में लौटी दुर्लभ प्रजाति: गांधी सागर में कैमरा ट्रैप में दिखा स्याहगोश

 


मंदसौर। मध्यप्रदेश के गांधी सागर वन्यजीव अभ्यारण्य में दुर्लभ और विलुप्तप्राय श्रेणी के मांसाहारी वन्य प्राणी 'कैराकल'की उपस्थिति दर्ज की गई है। कैमरा ट्रैप में कैद हुई इस प्रजाति की छवि ने न केवल वन्यजीव प्रेमियों और वैज्ञानिकों को उत्साहित किया है, बल्कि प्रदेश के संरक्षण प्रयासों की सफलता का भी ठोस प्रमाण पेश किया है।

वन अधिकारियों के अनुसार, कैमरा ट्रैप में कैद हुआ यह वयस्क नर कैराकल जैव विविधता की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण संकेत है। यह संकेत करता है कि गांधी सागर का पारिस्थितिक तंत्र आज भी इतना समृद्ध और संतुलित है कि यह एक अत्यंत संवेदनशील और दुर्लभ प्रजाति को आश्रय देने में सक्षम है।

क्या है कैराकल (स्याहगोश)?

कैराकल एक तेज़, अत्यंत सतर्क और शर्मीला मांसाहारी जीव है जो मुख्यतः रात्रिचर होता है। इसका प्राकृतिक आवास शुष्क, झाड़ीदार, पथरीले और खुले घास वाले इलाके होते हैं। भारत में इसकी उपस्थिति अब बेहद कम पाई जाती है और इसे "विलुप्तप्राय" (Endangered) श्रेणी में रखा गया है। वर्षों से इसके दर्शन दुर्लभ हो गए थे, और संरक्षित क्षेत्रों में इसकी पुष्टि मिलना वन्यजीव विज्ञान के लिए अत्यंत अहम माना जा रहा है।

कई वर्षों बाद फिर दिखा 'स्याहगोश'

वन मंडल मंदसौर के अधिकारियों ने पुष्टि की है कि इस क्षेत्र में पिछले कई वर्षों के अंतराल के बाद पहली बार किसी संरक्षित वन क्षेत्र में कैराकल की मौजूदगी दर्ज की गई है। गांधी सागर अभ्यारण्य के वन अधिकारियों का कहना है कि "यह उपलब्धि अभ्यारण्य में पर्यावरणीय संतुलन, संरक्षण प्रयासों और प्राकृतिक आवासों की गुणवत्ता का जीवंत प्रमाण है।"

एक नई आश्रयस्थली बनता गांधी सागर अभ्यारण्य

गांधी सागर अभ्यारण्य का यह नवीन वन्य-आविष्कार इसे न सिर्फ क्षेत्रीय जैव विविधता में महत्वपूर्ण स्थान दिलाता है, बल्कि यह अभ्यारण्य अब उन चुनिंदा स्थलों में शामिल हो गया है, जहां दुर्लभ और विलुप्तप्राय प्रजातियां दोबारा अपने पैर जमा रही हैं। यह खोज मध्यप्रदेश के लिए गर्व का विषय है और भविष्य में कैराकल जैसे संवेदनशील प्राणियों के संरक्षण के लिए यहां अनुसंधान एवं संसाधनों का और अधिक विकास किए जाने की आवश्यकता को भी रेखांकित करती है।

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