दैनिक सांध्य बन्धु भोपाल। मध्य प्रदेश में प्रमोशन में आरक्षण को लेकर एक बार फिर संवैधानिक बहस तेज हो गई है। मामला इस समय मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की निगरानी में है, जहां राज्य सरकार से 15 जुलाई तक जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए गए हैं। इस दिशा में सरकार ने दो अलग-अलग वर्षों 2002 और 2025के आंकड़ों व परिस्थितियों का तुलनात्मक अध्ययन कर एक नई रिपोर्ट तैयार की है, जिसे महाधिवक्ता के माध्यम से अदालत में पेश किया जाएगा।
नई नीति की समीक्षा और कानूनी समन्वय
जानकारी के अनुसार, सरकार ने इस रिपोर्ट में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के पूर्ववर्ती आदेशों को समाहित करते हुए एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की कोशिश की है। प्रमोशन में आरक्षण को लेकर पिछले वर्षों में आए न्यायिक निर्णयों को नए नीति प्रारूप में शामिल करते हुए मुख्य सचिव अनुराग जैन ने वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों के साथ गहन समीक्षा की है। साथ ही, राज्य की प्रमोशन नीति 2025 को कानूनी कसौटी पर कसते हुए उसमें जरूरी बदलाव करने के संकेत दिए गए हैं।
नीति पर आपत्ति और न्यायिक हस्तक्षेप
उल्लेखनीय है कि सरकार द्वारा वर्ष 2025 में लागू की गई प्रमोशन नीति पर कुछ कर्मचारी संगठनों ने आपत्ति जताते हुए इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि यह नीति न तो न्यायसंगत है और न ही सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुरूप। इसी संदर्भ में हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को स्पष्ट और तथ्यपरक जवाब पेश करने को कहा है।
अदालती मापदंडों को ध्यान में रखकर बनाई गई रिपोर्ट
सरकार की ओर से तैयार की गई नई रिपोर्ट में प्रमोशन में आरक्षण देने के सभी पक्षों प्रशासनिक दक्षता, प्रतिनिधित्व का संतुलन, न्यायिक दिशा-निर्देश और सामाजिक न्याय की अवधारणा को ध्यान में रखा गया है। इस रिपोर्ट को अंतिम रूप देते समय यह प्रयास किया गया है कि अदालत के निर्देशों का पूरी तरह से पालन हो, जिससे कानूनी विवाद और कर्मचारी असंतोष को रोका जा सके।
अगला कदम: रिपोर्ट महाधिवक्ता को सौंपी जाएगी
सरकारी सूत्रों के अनुसार, बुधवार को यह रिपोर्ट राज्य महाधिवक्ता को सौंपी जाएगी, जो सरकार की ओर से इसे हाईकोर्ट में पेश करेंगे। रिपोर्ट में इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि भविष्य में कोई नीति विवाद की स्थिति पैदा न करे, इसके लिए विस्तृत कानूनी परीक्षण किया गया है।