दैनिक सांध्य बन्धु जबलपुर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने सीनियर एडवोकेट पर नाबालिग के साथ दुष्कर्म का लगाया गया आरोप झूठा पाया है और मामले में दर्ज FIR को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने रीवा एसपी को निर्देश दिया है कि झूठी शिकायत दर्ज करवाने वाली महिला के खिलाफ FIR दर्ज की जाए।
जस्टिस विशाल मिश्रा की बेंच ने सुनवाई के दौरान पाया कि शिकायतकर्ता महिला पहले भी कई लोगों के खिलाफ ब्लैकमेलिंग की नीयत से झूठी रिपोर्ट दर्ज करवा चुकी है। सीनियर एडवोकेट के पक्ष में दायर रिट याचिका में यह भी पेश किया गया कि जिस दिन आरोप किया गया, उसी दिन वे सुप्रीम कोर्ट दिल्ली में उपस्थित थे — उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के पंच कार्ड और फ्लाइट टिकट जैसे दस्तावेज़ अदालत में सबूत के रूप में रखे।
याचिकाकर्ता के वकीलों ने कोर्ट को बताया कि शिकायतकर्ता महिला ने जनवरी से लगातार ब्लैकमेल और झूठी शिकायतों की प्रवृत्ति दिखाई है। अदालत को यह भी बताया गया कि महिला ने पहले अपने मकान मालिक के नाबालिग बेटे के खिलाफ भी दुष्कर्म की शिकायत दर्ज करवाई थी, जबकि उनकी बड़ी बेटी ने मां की बात मानने से इनकार कर दिया था और बाद में छोटी बेटी के बयान का दुरूपयोग किया गया।
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पुलिस ने हाईकोर्ट के पास और आसपास लगे सीसीटीवी फुटेज, सुरक्षा गार्डों और अन्य साक्ष्यों की जांच कर आरोपों को खारिज कर दिया। अदालत ने पाया कि आरोपों की पुष्टि नहीं हुई और इसलिए सीनियर एडवोकेट के विरुद्ध दर्ज एफआईआर को निरस्त कर दिया गया।
हाईकोर्ट ने रीवा एसपी को निर्देश दिए हैं कि शिकायतकर्ता महिला के खिलाफ पोक्सो अधिनियम की धारा 22(1) तथा बीएनएस की धारा 240 व 248 के तहत कार्रवाई की जाएगी। साथ ही कोर्ट ने कहा कि भविष्य में इस तरह की गंभीर शिकायतों पर त्वरित कठोर कार्रवाई से पहले प्रारंभिक जांच कर ली जानी चाहिये, ताकि निर्दोषों को बेबुनियाद आरोपों का सामना न करना पड़े।
