दैनिक सांध्य बन्धु जबलपुर। श्रमणोपाध्याय 108 विरंजन सागर मुनिराज ने दशलक्षण महापर्व के अवसर पर उत्तम आकिंचन धर्म पर अपने प्रवचनों में बताया कि यह धर्म अहंकार और विकारों से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। मुनिराज ने कहा कि आकिंचन धर्म का अर्थ त्याग के बाद उस त्याग में मोह न रखना है। जैन आगम के अनुसार, मन में उठने वाले विकारों को निकालकर अपनी आत्मा की पहचान करना ही आकिंचन धर्म है।
मुनिराज ने कहा कि जीवन की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि मनुष्य यह समझ नहीं पाता कि वह कौन है। धन-संपत्ति और अन्य सांसारिक चीजें संयोग से मिलती हैं, लेकिन मनुष्य अपने भ्रम में यही सोचता है कि सबकुछ उसने ही अर्जित किया है। मुनिराज ने कहा कि अच्छे कर्म ही अच्छे संयोगों का निर्माण करते हैं और यह जीवन जीने का तरीका बदल देते हैं। उन्होंने श्रावकों को यह सिखाया कि आत्मज्ञान प्राप्त करते ही "मैं" की भावना समाप्त हो जाती है और यही आकिंचन धर्म है।
मुनिराज ने कहा कि धन, संपत्ति, और परिवार का गर्व करना अहंकार को जन्म देता है, जो अंततः मनुष्य को पतन की ओर ले जाता है। जबकि आकिंचन धर्म एक व्यक्ति को उसके अंदर के विकारों से मुक्त कर राजा बना सकता है। उन्होंने कहा कि जीवन में प्राप्त सबकुछ हमारे कर्मों का फल है और धर्म के माध्यम से पुण्य संयोगों को प्राप्त करना चाहिए।
लाल कुआं स्थित गणेश उत्सव पंडाल में मुनिराज ने सनातन संस्कृति पर विशेष प्रवचन दिए। उन्होंने राम और गणपति के चरित्र को बच्चों को समझाया, जिससे वे जीवन में आदर्श स्थापित कर सकें। प्रवचन के बाद बच्चों ने गणपति प्रतिमा के समक्ष मांस, मदिरा, नशा, और जुएं जैसी बुराइयों से दूर रहने का संकल्प लिया। इस अवसर पर समिति के अध्यक्ष मुदित पसारी, जतिन पसारी, आशु मिश्रा, मृदुल जैन, लक्षित जैन, और सचिन खरे भी उपस्थित थे।