शांति जीवन का अहम हिस्सा

दैनिक सांध्य बन्धु जबलपुर अनिरुद्ध सिंह "कुसुम "। शांति प्रत्येक व्यक्ति के जीवन की महत्त्वपूर्ण अवस्था है। शांति की अवस्था में हम अनंतकाल तक रह सकते हैं भागदौड़ और कोलाहल से भरे जीवन में बहुत दिन नहीं रह सकते, । व्यक्ति जीवन के कितने ही क्षेत्रों में ध्वजपताकाएं फहरा दें, परंतु अंततोगत्वा व्यक्ति को शांति ही चाहिए। सिकंदर विश्व विजय के पश्चात घर ही जाना चाहता था, सम्राट अशोक भी भीषण रक्तपात के बाद बुद्ध की शरण में ही गए। और एक परम सत्य आप कितना ही भागदौड़ कर लें अंततोगत्वा व्यक्ति को चिरनिद्रा में ही लीन होना है।

शांति प्रत्येक व्यक्ति के जीवन की महत्त्वपूर्ण अवस्था है। शांति की अवस्था में हम अनंतकाल तक रह सकते हैं, भागदौड़ और कोलाहल से भरे जीवन में बहुत दिन नहीं रह सकते, । व्यक्ति जीवन के कितने ही क्षेत्रों में ध्वजपताकाएं फहरा दें, परंतु अंततोगत्वा व्यक्ति को शांति ही चाहिए। सिकंदर विश्व विजय के पश्चात घर ही जाना चाहता था, सम्राट अशोक भी भीषण रक्तपात के बाद बुद्ध की शरण में ही गए। और एक परम सत्य आप कितना ही भागदौड़ कर लें अंततोगत्वा व्यक्ति को चिरनिद्रा में ही लीन होना है।

अब समझने वाली बात यहां ये है कि, यदि शांति जीवन तत्व, और परम उद्देश्य करें, ये समझना भी वस्तु या इच्छा पूर्ति सामान्य नियम है, कि सिर्फ, शारीरिक ही नहीं पर भी लागू होता है। सिद्धांत बिल्कुल अलग नहीं मिलती, अपितु और ये ठहराव मात्र आपका मन भी और शान्ति प्राप्ति में है, और सबसे शारीरिक तौर पर मानसिक ठहराव प्राप्त जाते हैं। और इसी प्राप्त करने के लिए में वर्षों तपस्या करते सफलता प्राप्त होती हैं। पांच और दस नही सवार रहता है, उसे असंभव नहीं तो, बेहद मन कि महत्तवपूर्ण बात हम जहां होते हैं, मन यही मन का भटकाव,

का परम आवश्यक है, तो इसे प्राप्त कैसे जरूरी है। किसी भी हेतु दुनिया का एक उसके पीछे भागो, ये अपितु मानसिक तौर लेकिन शांति प्राप्ति का है, शांति भागने से ठहराव से मिलती हैं। शारीरिक ना हो, बल्कि ठहराव की स्थिति में हो, यही सबसे बड़ी चुनौती बड़ी बाधा है। व्यक्ति ठहर सकता है, लेकिन करने में वर्षों लग मानसिक ठहराव को ऋषि मुनि गिरी कंदराओं हैं, तब जाकर उन्हें क्योंकी मन एक, दो, बल्कि हजारों घोड़ों पर रोकना या बांधना मुश्किल जरूर है। यही है कि अक्सर वहां नहीं होता। और शान्ति प्राप्ति में एक बहुत बड़ी बाधा है यहां हमे ये समझना

बहुत जरूरी है कि शान्ति एकदम से नही मिलती, और इसे प्राप्त करने में हमारे छोटे छोटे प्रयास इस के लक्ष्य को साधने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं,। शान्ति के मायने आयु, देश और काल के अनुसार बदलते रहते हैं, अब मान लीजिए कि आप युद्धग्रस्त क्षेत्र में है तो आपकी प्राथमिकता स्वयं को जीवित रखने की होगी फिर आप हिंसा से भी गुरेज नहीं करेंगे। एक स्थिति पर विचार करते हैं, यदि विश्व महामारी की आपदा से जूझ रहा है, या विश्व युद्ध का दौर है, तो उस काल में भी शान्ति व्यक्ति की प्राथमिकता नहीं होगी। और आयु के विभिन्न दौर में भी हमारी प्राथमिकताएं बदलती रहती हैं। परन्तु अंतिम सत्य यही है, कि प्रत्येक स्थिति का अंत शान्ति के रुप में सामने आता है। यहां एक गौरतलब बात ये है कि विकास और निर्माण शांतिकाल में ही संभव है, सभ्यताओं और संस्कृति का चरम हमे शांतिकाल में ही देखने को मिलता है। शान्ति की तलाश हर महाद्वीप में अपने अपने हिसाब से की, क्योंकी शान्ति के विचार हर जगह अलग अलग हैं, मसलन यूरोप में भौतिक संसाधन ही शान्ति प्राप्ति का

साधन है, लेकिन भौतिक संसाधनों की शान्ति स्थाई नहीं होती, ये उन्हें बाद में समझ आता है। जबकि हमारे यहां शान्ति आत्मिक होती है। जो शान्ति के लिए ठहराव आवश्यक है, साथ ही संसार से अलगाव भी आवश्यक है। तभी हम स्थाई शान्ति को प्राप्त कर सकते हैं। भौतिक वस्तुएं मन की भूख शांत करती हैं, भोजन शरीर की भूख शांत करता हैं, जबकि शान्ति आत्मा की भूख शांत करती है। यूरोप की मानसिक अशांति का भटकाव एशिया के शांतिदूत के पास आकर ही ठहरता है। बुद्ध हो महावीर हो सभी की शांति का रास्ता अहिंसा से ही निकलता है। महात्मा गांधी भी कहते थे कि शान्ति तभी होगी जब हिंसा नहीं होगी। गांधी ने अपनी इसी बात को दृढ़ता पूर्वक कहा था कि,"" दुनिया में स्थाई शान्ति अहिंसा से ही आ सकती है "" अशांत मन शांति प्राप्ति में किस तरह बाधक है, इसे एक उदाहरण से समझते हैं। यदि मन शांत है तो तो आप ट्रेन के जनरल डिब्बे में भी सुकून से सो लेंगे, और यदि मन अशांत है तो ए सी की रिजर्व बर्थ में भी आप स्टेशन गिनते हुए गंतव्य तक पहुंचेंगे।

शान्ति की प्राप्ति में एक असमंजस्ता ये भी होती है कि, अक्सर लोग इसे भौतिक चीजों में तलाशते हैं, और भौतिक वस्तुएं नश्वर है, और जो नश्वर है, वो शान्ति कैसे देगा, उससे तो हमे अशांति ही मिलेगी, उसके नष्ट होने पर। शान्ति प्राप्ति हेतु ठहराव के बाद हमे आत्मकेंद्रित होना होता है,। शांति प्राप्ति में मन की चंचलता सबसे बड़ी बाधा है अशांत मन में कभी शांति प्राप्त नहीं हो सकती। हमे तटस्थता का अभ्यास करना चाहिए, दरअसल हम जितना वस्तुओं को देखते हैं, उतनी ही इच्छाएं जागृत होती हैं, फिर मन भटकता है। ये सिलसिला निरन्तर चलता रहता है। मन का यही भटकाव शान्ति प्राप्ति में सबसे बड़ी बाधा है। और मन के इसी भटकाव को रोकने के लिए हमे तटस्थता, और संतुष्टि के अभ्यास के साथ संसार से विलग होने का भाव जागृत करना होता है, इस साधना के बाद मन स्थिर होने लगता है। और हम शांति की राह में चलने लगते हैं। और शांति का प्रकाश पुंज हमारे अज्ञान के अन्धकार को हटा देता है।। और इस तरह हम शांति के लक्ष्य को साध लेते है। जयहिंद

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