दैनिक सांध्य बन्धु जबलपुर/ गौरव शर्मा। इतिहास, संस्कृति और परंपरा को हमेशा से हमारे जीवन का महत्वपूर्ण अंग माना गया है। इतिहास जहां हमे बहुत कुछ बतलाता है वहीं हमारी संस्कृति और परंपरा हमे जिंदगी के प्रत्येक चरण में हमे कुछ न कुछ शिक्षा देती है। ऐसी ही हमारी हिंदू धर्म में पुरातन काल से चली आ रही एक परंपरा है जिसमें हम अपने पूर्वजों का स्मरण कर उन्हें धन्यवाद ज्ञापित करते है जिसे हम पितृपक्ष के नाम से जानते हैं। शास्त्रों के अनुसार मनुष्य जीवन में तीन ऋण मुख्य है।
ये हैं 'देव ऋण', 'ऋषि ऋण', और 'पितृ ऋण'। इनमें से देव ऋण यज्ञादि द्वारा, ऋषि ऋण स्वाध्याय और पितृ ऋण को श्राद्ध द्वारा उतारा जाता है। इस ऋण का उतारा जाना जरूरी होता है क्योंकि जिन माता-पिता ने हमें जन्म दिया, हमारी उम्र, आरोग्य और सुख-समृद्धि के लिए कार्य और तकलीफें उठाईं उनके ऋण से मुक्त हुए बगैर हमारा जन्म निरर्थक है। प्रत्येक वर्ष पितृपक्ष में हम सभी अपने अपने दिवंगत पूर्वजों को श्रद्धासुमन अर्पित कर उनका स्मरण करते हैं। पितृ पक्ष में पूर्णिमा श्राद्ध, महा भरणी श्राद्ध और सर्वपितृ अमावस्या का विशेष महत्व होता है। पितृ शब्द का अर्थ पिता मात्र नहीं है। संस्कृत में इसका उपयोग सभी पूर्वजों के लिए किया जाता है। हम जो हैं, जैसे हैं और हममें जो होने की क्षमता है, उसमें हमारे पूर्वजों का बड़ा योगदान है। शास्त्रों के अनुसार यद्यपि हमारे पूर्वज देह में नहीं हैं, फिर भी वे पितृ लोक में निवास करते हुए किसी-न-किसी तरह हमसे जुड़े हुए हैं
और हम उनका ही विस्तार हैं। इसलिए उनकी हमसे अपेक्षाएं भी हैं और उनमें हमारी उन्नति की कामना भी है। श्राद्ध, यानी अपने पूर्वजों के लिए श्रद्धा से ओत प्रोत होकर किया गया कर्म न केवल उन्हें तृप्ति देता है, बल्कि पितरों से हमारे जुड़ाव को और अधिक हढ़ता प्रदान करता है। हिंदू धर्म की परंपरा अनुसार पितृ पक्ष दिवंगत पुण्य आत्माओं को समर्पित है और
उन्हें प्रसन्न करने, क्षमा मांगने और पितृ दोष (पूर्वजों का श्राप) से छुटकारा पाने के लिए है। इस अवधि के दौरान जन्म, जीवन और मृत्यु के चक्र से दिवंगत आत्मा को प्रसन्न करने के लिए श्राद्ध, तर्पण और पिंड दान जैसे अनुष्ठान किए जाते हैं। श्राद्ध में पितरों को आशा रहती है कि हमारे पुत्र- पौत्रादि हमें पिण्ड दान तथा तिलांजलि प्रदान कर संतुष्ट करेंगे। इसी आशा के साथ
वे पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं। यही कारण है कि हिंदू धर्म शास्त्रों में प्रत्येक हिंदू गृहस्थ को पितृपक्ष में श्राद्ध अवश्य रूप से करने के लिए कहा गया है। आलेख लिखने वाले पंडित गौरव शर्मा एक स्तंभ लेखक, अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा सनातन, जबलपुर के जिला अध्यक्ष एवं प्रांत प्रचार विभाग महाकौशल प्रांत के शोध आयाम टोली सदस्य है।