दैनिक सांध्य बन्धु कुलगाम। कश्मीर घाटी के कुलगाम विधानसभा क्षेत्र में इस बार चुनावी मुकाबला बेहद दिलचस्प हो गया है। पिछले 28 वर्षों से CPI (M) के यूसुफ तारिगामी यहां से लगातार जीतते आ रहे हैं, लेकिन इस बार उनका मुकाबला सयार अहमद रेशी से है, जिन्हें प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी का समर्थन प्राप्त है। कुलगाम सीट, जो कि ऐतिहासिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण है, पर 18 सितंबर को चुनाव होने जा रहे हैं।
कुलगाम का नाम संस्कृत से लिया गया है, जिसका अर्थ है "परिवार का गाँव"। यह इलाका अपने उपजाऊ खेतों के कारण कश्मीर का "अन्न भंडार" कहलाता है। हालांकि, 1990 के दशक से आतंकवाद ने इस क्षेत्र को बुरी तरह प्रभावित किया। यूसुफ तारिगामी ने 1996 से 2014 तक हुए चार विधानसभा चुनावों में लगातार जीत दर्ज की है, लेकिन उनके जीत के अंतर में गिरावट आई है।
तारिगामी के खिलाफ चुनाव लड़ रहे सयार अहमद रेशी, जमात-ए-इस्लामी समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार हैं। सयार रेशी का दावा है कि वे विकास और गरिमा के मुद्दों पर चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि तारिगामी का कहना है कि उन्होंने हमेशा लोकतांत्रिक सिद्धांतों की वकालत की है और उनकी रैलियों में "इंकलाब जिंदाबाद" के नारे गूंजते हैं।
कुलगाम के लोग बेरोजगारी, आर्टिकल 370 की बहाली और कश्मीरी पंडितों की वापसी को मुख्य मुद्दों के रूप में देख रहे हैं। यहां के युवा उच्च शिक्षित होने के बावजूद रोजगार के अवसरों की कमी से जूझ रहे हैं। वहीं, कश्मीरी पंडितों की घर वापसी पर दोनों उम्मीदवारों ने सकारात्मक रुख जताया है।
कुलगाम को 2016 में हिजबुल कमांडर बुरहान वानी के एनकाउंटर के बाद आतंकी गढ़ के रूप में देखा जाने लगा। यहां की घनी आबादी और भूगोल के कारण आतंकियों के लिए छिपने के मौके मिलते हैं। हाल के वर्षों में कई आतंकी घटनाएं इस क्षेत्र में सामने आई हैं, जिससे सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है।
विशेषज्ञों के अनुसार, कुलगाम में इस बार मुकाबला बेहद कड़ा है। जमात-ए-इस्लामी का मजबूत कैडर और सयार रेशी की लोकप्रियता ने यूसुफ तारिगामी के लिए राह मुश्किल बना दी है।