दैनिक सांध्य बन्धु राँची। 2 अगस्त 2000 को भारतीय संसद में बिहार पुनर्गठन विधेयक पेश हुआ, जिसके जरिए झारखंड राज्य का गठन होना था। इसका विरोध करते हुए आरजेडी के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने कहा, "झारखंड मेरी लाश पर बनेगा।" लेकिन राजनीतिक घटनाओं ने लालू की चुनौती को नजरअंदाज कर झारखंड को अलग राज्य के रूप में स्थापित कर दिया।
झारखंड आंदोलन में जयपाल सिंह मुंडा का योगदान महत्वपूर्ण रहा। ऑक्सफोर्ड में पढ़े और भारतीय हॉकी टीम के कप्तान रहे जयपाल ने आदिवासी अधिकारों के लिए संघर्ष किया। 1938 में 'अखिल भारतीय आदिवासी महासभा' का गठन कर आंदोलन को दिशा दी, जिसे 1950 में झारखंड पार्टी में परिवर्तित किया गया। लेकिन कांग्रेस के षड्यंत्र के कारण राज्य पुनर्गठन आयोग के सामने झारखंड की मांग कमजोर पड़ गई।
1951 के लोकसभा चुनाव में बाबू रामनारायण सिंह ने संसद में झारखंड के लिए आवाज उठाई। 1956 में राज्य पुनर्गठन आयोग की रिपोर्ट आई, लेकिन झारखंड की मांग को केवल आदिवासियों की मांग बताकर अस्वीकार कर दिया गया। इसके बाद भी झारखंड का संघर्ष रुका नहीं।
3 नवंबर 1978 को गोइलकेरा में आदिवासियों पर टैक्स के विरोध में हुए आंदोलन में महेश्वर जामुदा पुलिस की गोली का शिकार हुए। उन्हें झारखंड आंदोलन का पहला शहीद माना गया, जिसने आंदोलन को और गति दी।
1972 में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) का गठन हुआ। शिबू सोरेन, विनोद बिहारी महतो और एके राय जैसे नेताओं ने इसे स्थापित किया। इस पार्टी ने झारखंड की मांग को लेकर जोरदार आंदोलन छेड़ा और राज्य की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
1995 में लालू यादव ने झारखंड की मांग को नकारते हुए कहा था, "झारखंड मेरी लाश पर बनेगा।" लेकिन, परिस्थितियों और राजनीतिक समझौतों के चलते 2000 में उन्हें अलग झारखंड राज्य के विधेयक को समर्थन देना पड़ा।
14-15 नवंबर 2000 की रात राजभवन में झारखंड के पहले मुख्यमंत्री को नियुक्त करने के लिए राज्यपाल ने दोनों पक्षों का समर्थन परखा। अंततः, बाबूलाल मरांडी को रात 1:05 बजे झारखंड के पहले मुख्यमंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई।
झारखंड राज्य का गठन कई संघर्षों, शहादतों और राजनीतिक घात-प्रतिघातों का परिणाम है। आदिवासी नेताओं और झारखंड आंदोलन के समर्थकों के प्रयासों ने इस राज्य को उसकी पहचान दिलाई, जिससे यह आज 24 साल का हो चुका है और विकास की ओर अग्रसर है।