दैनिक सांध्य बन्धु जबलपुर। मध्य प्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर में 1 मार्च 1960 को जन्मे लखन घनघोरिया का जीवन संघर्ष, सेवा और संकल्प की प्रेरणादायक कहानी है। राजनीति में कदम रखने के साथ, उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धियाँ हासिल कीं। 1983 में रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय से बी.एससी. करने के बाद, 2001 में एल.एल.बी. की पढ़ाई पूरी की। लेकिन उनकी असली पहचान समाजसेवा के प्रति उनकी अटूट निष्ठा से बनी।
राजनीतिक सफर: संघर्ष से सफलता तक
युवावस्था में कांग्रेस से जुड़े लखन घनघोरिया ने 2008 में जबलपुर पूर्व विधानसभा सीट से जीत दर्ज कर राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाई। हालांकि, 2013 में मामूली अंतर से हार गए, लेकिन 2018 में जबरदस्त वापसी की। उन्होंने 90,206 वोटों के साथ 35136 के बड़े अंतर से जीत दर्ज की, जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी भाजपा के अंचल सोनकर को मात्र 55,070 वोट मिले।
मंत्री पद और समाज सेवा में नया अध्याय
मध्य प्रदेश में 15 साल बाद बनी कांग्रेस की कमलनाथ सरकार में लखन घनघोरिया को सामाजिक न्याय एवं नि:शक्तजन कल्याण, अनुसूचित जाति कल्याण मंत्री बनाया गया। अपने कार्यकाल में उन्होंने वंचित वर्गों के उत्थान के लिए कई प्रभावी योजनाएँ लागू कीं। उनका लक्ष्य हमेशा समाज में समानता और न्याय स्थापित करना रहा है।
2023 का चुनाव ऐतिहासिक
2023 का चुनाव उनके लिए ऐतिहासिक साबित हुआ। जब पूरे जिले में कांग्रेस सिर्फ एक सीट बचा पाई, तो वह सीट लखन घनघोरिया के खाते में गई। उन्होंने 27,741 वोटों के विशाल अंतर से जीतकर यह साबित कर दिया कि जनता का भरोसा उनके साथ है।
संकल्प और संघर्ष: ‘सद्बुद्धि पदयात्रा’ से विकास की ओर
हाल ही में उन्होंने ‘संकल्प सद्बुद्धि पदयात्रा’ का नेतृत्व किया, जो अंबेडकर चौक से अब्दुल हमीद चौक तक निकाली गई। इस पदयात्रा का मकसद क्षेत्र में फ्लाईओवर ब्रिज निर्माण की माँग को सरकार तक पहुँचाना था, जिससे नागरिकों को यातायात संबंधी दिक्कतों से राहत मिल सके।
कार्यकर्ताओं के लिए डटे, रात ढाई बजे थाने में दिया धरना
विधायक लखन घनघोरिया अपने कार्यकर्ताओं के लिए किसी भी चुनौती का सामना करने से पीछे नहीं हटते। हाल ही में एनएसयूआई के दो कार्यकर्ताओं को पुलिस ने रात में गिरफ्तार कर लिया, जिसके बाद लखन घनघोरिया ने रात ढाई बजे सिविल लाइन थाने पहुंचकर धरना दिया और कार्यकर्ताओं की रिहाई करवाई।
संघर्षों से सफलता तक का सफर
लखन घनघोरिया का सफर आसान नहीं था। उनके पिता स्वर्गीय शिवलाल घनघोरिया और भाई स्वर्गीय भरत घनघोरिया भी पार्षद रहे, लेकिन राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाना उनके लिए किसी संघर्ष से कम नहीं था। आर्थिक तंगी से लेकर राजनीतिक चुनौतियों तक, उन्होंने हर मुश्किल का सामना किया और आज जनता के प्रिय जनसेवक बने।
जन्मदिन: एक उत्सव नहीं, सेवा का संकल्प
लखन घनघोरिया अपने जन्मदिन को केवल व्यक्तिगत उत्सव नहीं मानते, बल्कि इसे समाजसेवा के अवसर के रूप में मनाते हैं। इस बार भी 1 मार्च को उनके जन्मदिवस पर विशाल स्वास्थ्य शिविरों का आयोजन किया गया, जहाँ नि:शुल्क नेत्र परीक्षण और अन्य चिकित्सा सेवाएँ प्रदान की जा रही है। यह पहल उनके समाज के प्रति अटूट समर्पण को दर्शाती है। उनका जीवन समाजसेवा, समर्पण और संघर्ष की मिसाल है। जबलपुर की जनता उन्हें केवल एक नेता के रूप में नहीं, बल्कि अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाले योद्धा के रूप में देखती है। उनका जन्मदिन सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि सेवा, संकल्प और संघर्ष की कहानी है, जो हर किसी को प्रेरित करती है।