बजट और कर्ज को लेकर सरकार पर तंज
घनघोरिया ने सरकार के 4.21 लाख करोड़ रुपये के बजट को लेकर सवाल उठाए और कहा कि राज्य पर इतना ही कर्ज है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार "गोल-गोल रानी, इत्तन-इत्तन पानी" की नीति पर चल रही है और बजट में सिर्फ वादों की बारिश हो रही है।
लाड़ली लक्ष्मी बहना योजना पर उठाए सवाल
उन्होंने लाड़ली लक्ष्मी बहना योजना को लेकर कहा कि इसमें स्पष्टता की कमी है। क्या इसे जीवन ज्योति बीमा और अटल पेंशन योजना से जोड़ दिया गया है? क्या किश्त की राशि इसी से काटी जाएगी? उन्होंने कहा कि योजना में पंजीयन घट रहा है और सरकार इसे स्पष्ट करने में असफल रही है।
रोजगार और औद्योगिक समिट पर सवाल
विधायक ने कहा कि संकल्प पत्र में हर साल 1 लाख नौकरियों का वादा किया गया था, जबकि पिछले बजट में 4 लाख नौकरियों की बात थी और अब 3 लाख नौकरियों की बात हो रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि औद्योगिक समिट सिर्फ दिखावा हैं और ज़मीन पर कोई बदलाव नहीं दिख रहा।
किसानों के लिए बजट नाकाफी
कृषि प्रधान प्रदेश होने के बावजूद किसानों के लिए सिर्फ 9% बजट रखे जाने पर उन्होंने नाराजगी जताई। उन्होंने कहा कि एमएसपी के वादे खोखले साबित हो रहे हैं और धान उपार्जन के लिए सिर्फ 850 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है, जो नाकाफी है।
जबलपुर की उपेक्षा का आरोप
घनघोरिया ने जबलपुर में अधूरे पड़े फ्लाईओवर प्रोजेक्ट्स और शहर की अनदेखी का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि 2011-12 से प्रस्तावित फ्लाईओवर आज तक अधूरा पड़ा है, जबकि अन्य शहरों में विकास कार्य तेजी से पूरे हो रहे हैं।
स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र की बदहाली
स्वास्थ्य बजट को लेकर उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार 10,000 MBBS सीटें बढ़ा रही है, लेकिन प्रदेश को सिर्फ 400 सीटें मिली हैं। स्कूल शिक्षा विभाग में भी 87,000 पद रिक्त होने के बावजूद सिर्फ 19,362 नियुक्तियों की घोषणा की गई है।
नगर निगमों में वित्तीय संकट
नगर निगमों को अपने संसाधन खुद जुटाने की सलाह देने पर भी उन्होंने सरकार को घेरा। उन्होंने जबलपुर नगर निगम के वित्तीय संकट की ओर इशारा करते हुए कहा कि इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि वेतन देने तक के पैसे नहीं हैं।
वृक्षारोपण और जल जीवन मिशन पर तंज
विधायक ने सरकार की वृक्षारोपण योजनाओं को भी हवा-हवाई करार दिया। उन्होंने कहा कि "गाय घास खाकर चली गई" वाली स्थिति वृक्षारोपण की हो गई है – कागजों पर पेड़ लगाए जाते हैं, लेकिन ज़मीन पर नहीं दिखते।
अंत में सरकार पर तीखा व्यंग्य
अपने भाषण के अंत में घनघोरिया ने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा: "बड़ा न बन पाया, कोई अपनी शान झूठ बोलकर, मगर वह छू रहा है आसमान, झूठ बोलकर, कभी तो सच्ची बात कर, कभी तो सच से प्यार कर, तमाम उम्र किसकी चलती है, दुकान झूठ बोलकर।"