दैनिक सांध्य बन्धु जबलपुर। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने सिविल जज (कनिष्ठ खंड) के 138 पदों पर चल रही भर्ती प्रक्रिया को लेकर उठे विवाद के बीच बड़ा आदेश जारी किया है। मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत एवं न्यायमूर्ति विवेक जैन की खंडपीठ ने 16 मई को हुई विशेष सुनवाई में निर्देश दिए कि भर्ती प्रक्रिया को तीन माह के भीतर पूरा किया जाए, लेकिन यह स्पष्ट किया कि सभी नियुक्तियां याचिका के अंतिम निर्णय के अधीन रहेंगी।
भर्ती में आरक्षित वर्ग की अनदेखी का आरोप
याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि भर्ती प्रक्रिया में ओबीसी, एससी और एसटी वर्ग के प्रतिभाशाली उम्मीदवारों की उपेक्षा हुई है। 17 नवंबर 2023 को जारी विज्ञापन में ओबीसी वर्ग को किसी प्रकार की छूट नहीं दी गई और सभी अर्हताएं अनारक्षित वर्ग के समान रखी गईं। साथ ही यह भी कहा गया कि साक्षात्कार के लिए 20 अंक की न्यूनतम सीमा अवैज्ञानिक है।
चयन सूची में असमानता का आरोप
10 मई को घोषित मुख्य परीक्षा परिणाम के अनुसार, अनारक्षित वर्ग के 59 अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के लिए चयनित किया गया, जबकि ओबीसी वर्ग से केवल 15, एससी वर्ग से 3 और एसटी वर्ग से एक भी अभ्यर्थी को नहीं चुना गया। याचिकाकर्ताओं ने संविधान के अनुच्छेद 335 का हवाला देते हुए कहा कि आरक्षित वर्गों को शिथिल मानदंडों का लाभ मिलना चाहिए था।
सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद बहाल हुई प्रक्रिया
गौरतलब है कि हाईकोर्ट ने 24 जनवरी 2025 को भर्ती प्रक्रिया पर स्थगन आदेश जारी किया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 3 मार्च 2025 को रद्द करते हुए खाली पदों को भरने का निर्देश दिया था। इसके बाद हाईकोर्ट ने अब स्पष्ट किया कि 24 जनवरी का स्थगन आदेश संशोधित किया जाता है, लेकिन चयन प्रक्रिया पूरी तरह याचिका के फैसले पर निर्भर रहेगी।
वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने रखा पक्ष
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर और विनायक प्रसाद शाह ने तर्क प्रस्तुत किए, जबकि हाईकोर्ट की ओर से अधिवक्ता दीपक अवस्थी ने पक्ष रखा। यह मामला न केवल भर्ती की पारदर्शिता से जुड़ा है, बल्कि सामाजिक न्याय और संवैधानिक समानता के सिद्धांतों से भी संबंधित है।
ऐसे थे पदों का वर्गीकरण
विज्ञापन के अनुसार कुल 138 पदों में अनारक्षित वर्ग के 31, बैकलाग 17, अनुसूचित जाति के 9, बैकलाग 11, अनुसूचित जनजाति के 12, बैकलाग 109, ओबीसी के 9, बैकलाग 1 और दिव्यांगजन के लिए 6 पद निर्धारित किए गए थे।