सरकारी रजिस्टरों में, पूरी कायदे-कानून के साथ। और हर बार सरकार ने 4 लाख रुपए की राहत राशि 'शोक' स्वरूप जारी कर दी। कुल कुल मिलाकर 11 करोड़ 26 लाख का शोक-विवेक घोटाला। अब इसे घोटाला कहें या 'मृत प्रबंधन योजना', पर इतना तय है कि मरने वाले भी अब सोचेंगे कि मरने के बाद कहां रजिस्ट्रेशन कराएं ताकि 'ज्यादा बार मरे' और फायदा बढ़े। 21 लोग गिरफ्तार हो चुके हैं, मास्टरमाइंड भी सलाखों के पीछे हैं, संदिग्ध एसडीएम और पांच तहसीलदार हैं जो फिर कागजों में लाशें ढूंढने में लगे होंगे।
मगर असली पेंच यहां फंस रहा है जांच अब इस बात की भी हो रही है कि क्या ये खेल सिर्फ सिवनी तक ही सीमित है या पूरे मध्यप्रदेश में ही कहीं न कहीं 'मौत योजना' के तहत जिंदगीभर की कमाई की जा रही है? क्योंकि अगर सिवनी में 280 बार लोग मरे, तो क्या बाकी जिलों में सिर्फ 'ईमानदारी की गारंटी' पर भरोसा कर लें...? ये मामला केवल सिवनी का नहीं, बल्कि सवाल मध्यप्रदेश के हर उस जिले पर है जहाँ कागज़ पर लाशें जिंदा हैं और राहत राशियाँ हवा में उड़ रही हैं। कभी-कभी तो लगता है कि योजना बनती है जनता के लिए, चलती है फाइलों में और फलती है सिर्फ चतुर अफसरों के जेब भरने के लिए। यारा तो आज का संदर्भ सीधा है 'जहां मौत भी सरकारी योजनाओं से जुड़कर इतनी प्रोडक्टिव हो चुकी है, वहीं जिंदा आदमी... वो सरकारी योजना का फॉर्म भरते-भरते थक चुका है!