दैनिक सांध्य बन्धु जबलपुर। कटनी की यूरो प्रतीक इस्पात प्राइवेट लिमिटेड कंपनी से डायरेक्टरों को फर्जी दस्तावेजों के आधार पर हटाने के मामले में मध्यप्रदेश हाई कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आईजी (महानिरीक्षक) स्तर का अधिकारी जांच की दिशा तय कर सकता है, लेकिन किसी भी आरोपी की गिरफ्तारी को रोकने का अधिकार उसके पास नहीं है। खासकर तब, जब सुप्रीम कोर्ट तक से अग्रिम जमानत खारिज हो चुकी हो।
जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन की खंडपीठ ने बुधवार को यह फैसला सुनाते हुए रायपुर निवासी कंपनी के तीन डायरेक्टर हिमांशु श्रीवास्तव, सन्मति जैन, सुनील अग्रवाल और सेक्रेटरी लाची मित्तल की अपील को खारिज कर दिया। कोर्ट के आदेश के बाद इनकी कभी भी गिरफ्तारी हो सकती है।
पूर्व डायरेक्टर हरनीत सिंह लांबा ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर जबलपुर के तत्कालीन आईजी अनिल सिंह कुशवाह के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उन्होंने आरोपियों की गिरफ्तारी पर रोक लगाई थी। हाई कोर्ट ने उस आदेश को अवैध करार दिया और कहा कि यदि किसी जांच अधिकारी की कार्यशैली पर आपत्ति हो, तो उसे बदला जा सकता है, लेकिन गिरफ्तारी न करने का निर्देश देना अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
हरनीत सिंह लांबा और सुरेन्द्र सिंह सलूजा पहले इस कंपनी के डायरेक्टर थे। आरोप है कि अन्य डायरेक्टरों और कंपनी सेक्रेटरी ने मिलकर फर्जी त्यागपत्र और कूटरचित दस्तावेजों के आधार पर उन्हें डायरेक्टर पद से हटा दिया। इसके बाद दोनों ने कटनी के विभिन्न थानों में एफआईआर दर्ज कराई थी।
इस मामले में आरोपी डायरेक्टरों को निचली अदालत, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से अग्रिम जमानत नहीं मिल सकी। जांच एजेंसी ने हर स्तर पर यह तर्क दिया कि पूछताछ के लिए गिरफ्तारी आवश्यक है, साथ ही कुछ अहम दस्तावेज भी आरोपियों के पास हैं, जिनकी बरामदगी जरूरी है।
कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि जब तक यह तय नहीं हो जाता कि हरनीत सिंह और सुरेन्द्र सिंह ने स्वेच्छा से इस्तीफा दिया था या नहीं, तब तक कंपनी की सालाना आम बैठक (AGM) पर रोक जारी रहेगी। पुलिस इस पूरे मामले की जांच कर रही है।