Jabalpur News: शहपुरा थाने में जांच करने पहुंचे मानवाधिकार आयोग के सदस्य प्रियंक कानूनगो से ASI ने कहा - ‘बिना पूर्व सूचना के आप नहीं आ सकते’

दैनिक सांध्य बन्धु जबलपुर। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य प्रियंक कानूनगो और मध्यप्रदेश पुलिस के बीच रविवार रात एक थाने के निरीक्षण को लेकर टकराव की स्थिति बन गई। कानूनगो ने सोशल मीडिया पर सवाल उठाते हुए लिखा—“क्या अब पुलिस थाने का निरीक्षण करने के लिए भी आज्ञा लेनी होगी? आपके शहपुरा थाने के एएसआई का कहना है कि बिना पूर्व सूचना के आप थाने नहीं आ सकते।”

प्रियंक कानूनगो ने यह पोस्ट एक्स (ट्विटर) पर साझा करते हुए मध्यप्रदेश के डीजीपी से जवाब मांगा है। उन्होंने लिखा कि शहपुरा थाने के स्टाफ ने निरीक्षण में सहयोग नहीं किया और रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं कराया। कानूनगो ने कहा कि अब वह डीजीपी से यह स्पष्ट पूछेंगे कि निरीक्षण के लिए उन्हें किसकी अनुमति लेनी होगी।

प्रियंक कानूनगो ने बताया कि रविवार रात जब वे भोपाल जा रहे थे, तब अचानक जबलपुर जिले के शहपुरा थाने पहुंचे। वहां उन्हें सिर्फ दो कॉन्स्टेबल मिले। हवालात में बंदियों की गणना का कोई रिकॉर्ड नहीं मिला। जब उन्होंने रजिस्टर दिखाने को कहा, तो वहां पदस्थ एसआई महेंद्र जाटव को बुलाया गया। कुछ देर बाद जब एसआई पहुंचे, तो उन्होंने सहयोग से इनकार करते हुए कहा कि “बिना सूचना आप निरीक्षण नहीं कर सकते।”

कानूनगो के मुताबिक, थाने में 30 पुलिसकर्मियों की ड्यूटी दर्ज है, लेकिन 30 तारीख से 6 तारीख तक शाम की गणना दर्ज ही नहीं की गई थी। उन्होंने थाने में रखे पचासों लीटर पेट्रोल के ड्रम भी देखे और सवाल उठाया कि अगर आग लग जाती तो जिम्मेदारी किसकी होती।

प्रियंक कानूनगो ने बताया कि वे दरअसल बंशीपुर गांव के निवासी सुदर्शन सिंह (48) के मामले की जांच के लिए पहुंचे थे। आरोप है कि 6 महीने पहले शहपुरा पुलिस ने अवैध शराब के शक में उसके घर पर छापा मारा था, शराब न मिलने पर उसकी जमकर पिटाई की और झूठा मामला दर्ज कर जेल भेज दिया। जेल में हुई एमएलसी में यह बात सामने आई कि पुलिस ने उसे बुरी तरह पीटा था। उसी मामले की जांच के लिए कानूनगो अचानक थाने पहुंचे थे।

एसआई महेंद्र जाटव ने बताया कि प्रियंक कानूनगो रविवार रात प्राइवेट गाड़ी में कुर्ता-पैजामा पहनकर दो साथियों और गनमैन के साथ आए थे। वह उन्हें पहचान नहीं पाए। उन्होंने बताया कि टीआई से फोन पर बात कराने की कोशिश की गई, लेकिन बात नहीं हो पाई। कंट्रोल रूम से भी कोई सूचना नहीं आई थी। उन्होंने कहा कि थाने में ऐसा कोई केस लंबित नहीं था, जिसकी जांच के लिए आयोग के सदस्य को आना था।

इस पूरे मामले में एएसपी सूर्यकांत शर्मा ने कहा कि मानवाधिकार आयोग के सदस्य से फोन पर बात हुई है। उन्होंने बताया कि थाने के स्टाफ ने उनके साथ अनुचित व्यवहार किया। इस मामले का प्रतिवेदन एसपी को भेजा गया है और संबंधित पुलिसकर्मियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की जा रही है। अगर कोई पहचान से जुड़ी गलतफहमी हुई है, तो भी यह अनुचित है। पुलिसकर्मियों का व्यवहार हर नागरिक से सम्मानजनक होना चाहिए।

Post a Comment

Previous Post Next Post