दैनिक सांध्य बन्धु नई दिल्ली (एजेंसी)। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के दोनों चरणों की वोटिंग समाप्त हो चुकी है। पहले चरण में 6 नवंबर को 121 और दूसरे चरण में 11 नवंबर को 122 सीटों पर मतदान हुआ। ग्राउंड रिपोर्ट्स और राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, इस बार राज्य में सत्ता की बागडोर एक बार फिर एनडीए (NDA) के हाथों में जाती दिख रही है। सर्वे अनुमानों के मुताबिक NDA को 145 से 160 सीटों तक मिल सकती हैं, जबकि महागठबंधन को 73 से 91 सीटों तक सीमित रहना पड़ सकता है।
इस चुनाव में सबसे बड़ा उभार जेडीयू (JDU) का दिख रहा है। 2020 में 43 सीटों तक सिमट चुकी जेडीयू इस बार 59 से 68 सीटें जीतकर मजबूत वापसी कर सकती है। भाजपा (BJP) भी 72 से 82 सीटों तक पहुंच सकती है। वहीं लोजपा (रामविलास), हम और आरएलएम जैसी सहयोगी पार्टियों को सीमित लाभ के आसार हैं।
महागठबंधन को भारी नुकसान होता दिख रहा है। आरजेडी (RJD) 12 से 24 सीटों तक घट सकती है और कांग्रेस महज 12 से 15 सीटों तक सिमट सकती है। लेफ्ट पार्टियों का प्रदर्शन भी पिछली बार की तुलना में कमजोर नजर आ रहा है।
राज्य में कई हाईप्रोफाइल सीटों पर कड़ी टक्कर बनी हुई है। लखीसराय में उपमुख्यमंत्री विजय सिन्हा, अलीनगर में मैथिली ठाकुर, महुआ में तेजप्रताप यादव, दानापुर में रामकृपाल यादव और तारापुर में सम्राट चौधरी की सीटों पर मुकाबला रोमांचक है।
विशेषज्ञों के अनुसार, जातीय समीकरण, महिला मतदाताओं का समर्थन और नीतीश कुमार की योजनाओं ने NDA को मजबूती दी है। जन सुराज के प्रशांत किशोर, चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा जैसे चेहरे इस चुनाव में चर्चा में जरूर रहे, लेकिन निर्णायक प्रभाव नहीं डाल पाए।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस बार भी बिहार में जातीय समीकरण वोटिंग का सबसे अहम आधार बने हैं। मुसलमान-यादव मतदाता महागठबंधन के साथ हैं, जबकि गैर-यादव ओबीसी, कुर्मी और बनिया समुदाय NDA के पक्ष में झुकाव दिखा रहे हैं।
महिला वोट नीतीश कुमार के पक्ष में निर्णायक साबित हो रहे हैं। सरकार की ‘10 हजार रुपये महिला सहायता योजना’ और 125 यूनिट फ्री बिजली जैसी घोषणाओं ने ग्रामीण और महिला मतदाताओं में नीतीश की लोकप्रियता बढ़ाई है। राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि इन योजनाओं ने एंटी-इनकम्बेंसी को काफी हद तक खत्म कर दिया है।
तेजस्वी यादव अपने पिता लालू प्रसाद यादव के समय की ‘जंगलराज’ वाली छवि से अब तक पूरी तरह बाहर नहीं निकल पाए हैं। यह नैरेटिव NDA लगातार मजबूत करता रहा है, जिससे विपक्ष की मुश्किलें बढ़ी हैं।
कांग्रेस और वीआईपी को महागठबंधन की कमजोर कड़ी माना जा रहा है। कई सीटों पर महागठबंधन के भीतर ही फ्रेंडली फाइट देखने को मिली, जिससे संयुक्त विपक्ष की स्थिति और कमजोर हो गई।
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि अगर जेडीयू 50 से अधिक सीटें जीतती है, तो नीतीश कुमार एक बार फिर मुख्यमंत्री की दौड़ में मजबूत दावेदार बनेंगे। भाजपा भी गठबंधन में संतुलन बनाए रखते हुए अपने संगठन और मोदी की लोकप्रियता का लाभ उठा रही है।
