दैनिक सांध्य बन्धु जबलपुर। पति की मौत के बाद दो एकड़ जमीन अपने और बेटों के नाम कराने के लिए एक बैगा आदिवासी महिला पिछले पांच साल से सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रही है। कुंडम तहसील से लेकर कलेक्ट्रेट तक आवेदन देने के बावजूद न तो नामांतरण हुआ और न ही न्याय मिला। उल्टा, आरोप है कि 20 हजार रुपए की रिश्वत लेने के बाद भी काम लटका दिया गया।
यह दर्द 52 वर्षीय बैगा महिला बेल बाई का है, जिनके पति जंगलिया बैगा की बीमारी से 2019–20 में मौत हो गई थी। जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर टिकरिया गांव की रहने वाली बेल बाई आज भी इंसाफ की उम्मीद में जबलपुर आती-जाती हैं।
बकरियां बेचकर दी रिश्वत, फिर भी नामांतरण नहीं
बेल बाई का आरोप है कि 2024 में कुंडम तहसील में फौती नामांतरण के लिए आवेदन देने पर कंप्यूटर ऑपरेटर ने 20 हजार रुपए मांगे। परिवार की मजबूरी ऐसी थी कि बकरियां बेचकर पैसे दिए, लेकिन इसके बावजूद फाइल आगे नहीं बढ़ी।
एक बेटा दिव्यांग, बकरी चराकर गुजर-बसर
पति की मौत के बाद खेती बंद हो गई। आज बेल बाई बकरी चराकर जीवन यापन कर रही हैं। उनका एक बेटा दिव्यांग है। उनका कहना है कि यदि जमीन नाम हो जाए, तो सिकमी देकर कुछ आमदनी हो सकेगी।
49 पेड़ कटे, 40 लाख का दावा—एक रुपया नहीं मिला
2019 में खेत से सागौन, कोहा, साजा, कोसम, मुंडी और गुंजा सहित 49 पेड़ कटवाए गए। कहा गया था कि करीब 40 लाख रुपए मिलेंगे। बैंक खाता भी खुलवाया गया, लेकिन पति की मौत के बाद पूरी रकम गायब हो गई।
वन विभाग ने भुगतान के लिए पहले फौती नामांतरण कराने की बात कही—और यहीं से बेल बाई की परेशानी और बढ़ गई।
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