फरवरी 2026 से बदलेगा महंगाई और GDP मापने का तरीका, सरकार जारी करेगी नई सीरीज

दैनिक सांध्य बन्धु नई दिल्ली (एजेंसी)। केंद्र सरकार देश की अर्थव्यवस्था को मापने के तरीकों में बड़ा बदलाव करने जा रही है। फरवरी 2026 से रिटेल महंगाई (CPI) और देश की विकास दर यानी GDP के आंकड़े नई सीरीज के तहत जारी किए जाएंगे। इसके अलावा इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन इंडेक्स (IIP) के आंकड़े मई 2026 से नए आधार वर्ष के अनुसार जारी होंगे। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) ने इसकी तैयारी पूरी कर ली है।

नई व्यवस्था के तहत GDP और IIP के लिए आधार वर्ष 2022-23 तय किया गया है, जबकि रिटेल महंगाई के लिए बेस ईयर 2024 होगा। फिलहाल महंगाई और GDP की गणना 2011-12 के आधार वर्ष पर की जा रही है, जो करीब 14 साल पुराना हो चुका है। विशेषज्ञ लंबे समय से इसे अपडेट करने की मांग कर रहे थे, क्योंकि लोगों के खर्च करने के तरीके और प्राथमिकताएं पिछले एक दशक में काफी बदल चुकी हैं।

सरकारी अधिकारियों के मुताबिक नई सीरीज में महंगाई की गणना ज्यादा वास्तविक होगी। रिटेल महंगाई में खाने-पीने की चीजों का वेटेज घटाया जा सकता है, क्योंकि अब लोग अपनी आय का बड़ा हिस्सा शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन और मनोरंजन जैसी सेवाओं पर खर्च कर रहे हैं। इससे महंगाई के आंकड़े मौजूदा उपभोक्ता व्यवहार को बेहतर तरीके से दर्शा पाएंगे।

इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन के नए आंकड़ों में उन उत्पादों को शामिल किया जाएगा, जिनका उत्पादन हाल के वर्षों में शुरू हुआ है, जबकि जिन वस्तुओं की बाजार में मांग नहीं रह गई है, उन्हें सूची से हटाया जा सकता है। इससे मैन्युफैक्चरिंग और माइनिंग सेक्टर की वास्तविक स्थिति सामने आएगी।

इस बदलाव को जरूरी बताते हुए मंत्रालय का कहना है कि पुराने आधार वर्ष पर आधारित आंकड़ों के कारण कई बार नीतिगत फैसलों में दिक्कत आती है। नया बेस ईयर लागू होने से रिजर्व बैंक को भी ब्याज दरों से जुड़े फैसले लेने में मदद मिलेगी, क्योंकि महंगाई का ज्यादा सटीक डेटा उपलब्ध होगा।

आम जनता पर इसका सीधा असर नहीं पड़ेगा, लेकिन सरकार की आर्थिक नीतियां और योजनाएं इन्हीं आंकड़ों पर आधारित होती हैं। ज्यादा सटीक डेटा से महंगाई को काबू में रखने और आर्थिक विकास को मजबूत करने में मदद मिलेगी। साथ ही GDP के वास्तविक आंकड़ों से विदेशी निवेशकों का भरोसा भी भारतीय अर्थव्यवस्था पर बढ़ेगा।

बेस ईयर वह वर्ष होता है, जिसकी कीमतों को आधार मानकर आगे के वर्षों की महंगाई और विकास दर की तुलना की जाती है। सरकार आमतौर पर हर 5 से 10 साल में इसे बदलती है, ताकि आर्थिक आंकड़े समय के साथ प्रासंगिक और भरोसेमंद बने रहें।

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