‘जी राम जी’ बिल को राष्ट्रपति की मंजूरी: चिदंबरम का हमला—मनरेगा से गांधी का नाम हटाना उनकी दोबारा हत्या जैसा

दैनिक सांध्य बन्धु (एजेंसी) चेन्नई। विकसित भारत–रोजगार और आजीविका मिशन (ग्रामीण) गारंटी बिल, 2025 यानी VB-G-RAM-G को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी मिलते ही यह कानून बन गया है। यह नया कानून करीब 20 साल पुराने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) की जगह लेगा। कानून बनने के साथ ही राजनीतिक बयानबाजी तेज हो गई है। कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने चेन्नई में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोला और कहा कि मनरेगा से महात्मा गांधी का नाम हटाना उनकी “दोबारा हत्या” करने जैसा है। उन्होंने कहा कि गांधी जी को एक बार 30 जनवरी 1948 को मारा गया था और अब उनकी विरासत को खत्म करने की कोशिश की जा रही है।

चिदंबरम ने कहा कि केंद्र सरकार गांधी और नेहरू को आधिकारिक रिकॉर्ड से मिटाने की कोशिश कर रही है, लेकिन वे भारतीय जनता के दिलों में बसे हैं—बुद्ध या यीशु की तरह। किसी भी सरकारी आदेश से उन्हें मिटाया नहीं जा सकता। उन्होंने नए कानून के नाम VB-G-RAM-G पर भी तंज कसते हुए कहा कि ऐसा जटिल नाम दक्षिण भारत के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों की समझ से बाहर है, बल्कि संभव है कि कुछ मंत्रियों को भी इसका मतलब ठीक से न पता हो। उन्होंने आरोप लगाया कि अब राज्यों को इसी सटीक नाम का इस्तेमाल करना होगा, वरना फंड नहीं मिलेगा।

कांग्रेस नेता ने दावा किया कि मनरेगा पहले एक सार्वभौमिक योजना थी, जो हर ग्रामीण जिले तक लागू होती थी, लेकिन नया कानून केंद्र द्वारा चुने गए कुछ जिलों तक ही सीमित रहेगा। उन्होंने कहा कि यह मनरेगा के मूल ढांचे के विपरीत है और अब यह राष्ट्रीय स्तर की योजना नहीं रह जाएगी। इसके अलावा, नए कानून में फंडिंग का बोझ भी राज्यों पर डाला जा रहा है। पहले केंद्र सरकार पूरी मजदूरी लागत और 75 प्रतिशत सामग्री खर्च वहन करती थी, लेकिन अब राज्यों को हिस्सेदारी देनी होगी। चिदंबरम ने चेतावनी दी कि जिन राज्यों के पास संसाधन नहीं होंगे, वहां यह योजना जमीन पर उतर ही नहीं पाएगी।

125 दिन रोजगार के सरकारी दावे पर भी चिदंबरम ने सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि वर्तमान में राष्ट्रीय औसत महज 50 दिन का है और बहुत कम मजदूर ही 100 दिन का काम पूरा कर पाते हैं। ऐसे में 125 दिन रोजगार का दावा हकीकत से दूर है। उन्होंने कहा कि यह केवल आंकड़ों और घोषणाओं की राजनीति है, जमीनी सच्चाई कुछ और है।

इससे एक दिन पहले कांग्रेस की राज्यसभा सांसद सोनिया गांधी ने भी VB-G-RAM-G बिल को लेकर सरकार पर हमला बोला था। उन्होंने वीडियो संदेश में कहा था कि सरकार ने जरूरतमंदों को रोजगार देने वाले मनरेगा पर बुलडोजर चला दिया है। अब किसे, कितना, कहां और किस तरह रोजगार मिलेगा, यह जमीनी जरूरतों के बजाय दिल्ली में बैठकर तय किया जाएगा।

गौरतलब है कि यह बिल शीतकालीन सत्र के दौरान संसद में पेश किया गया था और 18 दिसंबर को दोनों सदनों से पारित हुआ। लोकसभा में इस पर करीब 14 घंटे की लंबी चर्चा हुई। चर्चा के दौरान केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि मनरेगा का नाम शुरू में महात्मा गांधी के नाम पर नहीं था, बल्कि बाद में 2009 के चुनावों के दौरान इसमें गांधी का नाम जोड़ा गया। बिल के विरोध में विपक्षी दलों ने संसद परिसर में मार्च भी निकाला था, जिसमें 50 से अधिक सांसद शामिल हुए थे, जबकि तृणमूल कांग्रेस के सांसदों ने रातभर प्रदर्शन किया था।

नए कानून के तहत MGNREGA को पूरी तरह खत्म कर दिया जाएगा और उसके स्थान पर केवल VB-G-RAM-G ही लागू रहेगा। राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद राज्यों को छह महीने के भीतर अपनी नई योजना और डिजिटल–बायोमेट्रिक आधारित पंजीकरण व्यवस्था लागू करनी होगी। मजदूरी दरों को लेकर कानून में कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है, जिससे यह तय करना फिलहाल मुश्किल है कि मजदूरी बढ़ेगी या नहीं। 125 दिन का रोजगार गारंटी के तौर पर देने की बात कही गई है, लेकिन यह काम मांगने पर और सरकारी सार्वजनिक कार्यों तक सीमित होगा। वहीं बोवाई और कटाई के समय राज्यों को अधिकार होगा कि वे कुछ अवधि के लिए सरकारी काम अस्थायी रूप से रोक सकें, ताकि खेतों में मजदूरों की कमी न हो।

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