प्रदेश प्रभारी जितेंद्र सिंह पांच और छह जुलाई को विधायकों के साथ विधानसभा चुनाव के सभी प्रत्याशियों और प्रदेश पदाधिकारियों के साथ बैठक करेंगे। मध्य प्रदेश में कांग्रेस को जिस तरह से विधानसभा और लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा, उससे केंद्रीय संगठन भी आश्चर्यचकित है।
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 1,75,71,582 वोट मिले थे और भाजपा से पार्टी आठ प्रतिशत मतों के अंतर से पीछे रह गई थी। पांच माह बाद लोकसभा चुनाव में 1,23,08,049 वोट ही मिले यानी 53 लाख 63 हजार मत घट गए। इंदौर लोकसभा सीट से अधिकृत प्रत्याशी अक्षय कांति बम ने ऐनवक्त पर नाम वापस ले लिया तो खजुराहो लोकसभा सीट कांग्रेस ने गठबंधन के सहयोगी दल समाजवादी पार्टी के लिए छोड़ दी। यहां प्रत्याशी मीरा यादव का नामांकन निरस्त हो गया। इस प्रकार पार्टी की उपस्थिति 29 में से 27 सीटों में ही रही।
इसमें भी कांग्रेस का गढ़ छिंदवाड़ा लोकसभा सीट, जहां पार्टी सभी सात विधानसभा सीटें पिछले दो चुनाव से जीत रही थी, पर भी हार मिली। पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ के तमाम प्रयास के बाद भी यहां उनके बेटे नकुल नाथ एक लाख से अधिक मतों से चुनाव हार गए।
दो विधायकों ने किया भाजपा का मंच साझा
उन विधानसभा सीटों पर भी कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा, जहां पांच माह पूर्व पार्टी प्रत्याशी जीते थे। अमरवाड़ा से तीन बार के विधायक कमलेश शाह ने पार्टी छोड़ने के साथ विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया तो विजयपुर से रामनिवास रावत और बीना विधानसभा सीट से निर्मला सप्रे ने भी भाजपा का मंच साझा किया और पार्टी प्रत्याशी का विरोध किया।
प्रदेश प्रभारी करेंगे संवाद
पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी समेत बड़ी संख्या में वरिष्ठ नेताओं और कार्यकर्ताओं ने पार्टी छोड़ दी। इन सभी स्थितियों को देखते हुए प्रदेश प्रभारी जितेंद्र सिंह पांच और छह जून को विधानसभा चुनाव के प्रत्याशी, प्रदेश और जिला पदाधिकारियों के साथ बैठक करेंगे। सूत्रों का कहना है कि इसके बाद संगठन में बड़े स्तर पर परिवर्तन होगा। प्रदेश कार्यकारिणी घोषित करने के साथ कुछ जिला अध्यक्ष भी बदले जाएंगे।