दैनिक सांध्य बन्धु जबलपुर। भारतीय जनता पार्टी ने आखिरकार जबलपुर ग्रामीण अध्यक्ष के रूप में राजकुमार पटेल के नाम को अंतिम रूप दे दिया है। इस घोषणा के बाद उनके निवास पर बधाई देने वालों का तांता लग गया। हालांकि, ग्रामीण अध्यक्ष के नाम के फाइनल होने के साथ ही शहरी राजनीति में हलचल तेज हो गई है। महानगर अध्यक्ष की घोषणा में हो रही देरी ने कार्यकर्ताओं के बीच उत्सुकता और असंतोष दोनों को बढ़ा दिया है।
ग्रामीण अध्यक्ष के नाम पर क्यों हुआ विलंब?
ग्रामीण अध्यक्ष के चयन प्रक्रिया में कई गुटों और जातीय समीकरणों का सामना करना पड़ा। पार्टी ने इस बार पिछड़ा कार्ड खेलते हुए विभिन्न गुटों के नेताओं को साधने की कोशिश की। कुर्मी समाज से राजकुमार पटेल का चयन पार्टी की इस रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।
सूत्रों के मुताबिक, पार्टी के भीतर ब्राह्मण, आदिवासी, वैश्य, और लोधी जैसे समुदायों का प्रतिनिधित्व पहले से ही मजबूत है। लेकिन, ओबीसी वर्ग से कुर्मी और यादव समाज का प्रतिनिधित्व अभी तक स्पष्ट नहीं था। इसे संतुलित करने के लिए पार्टी ने इस बार राजकुमार पटेल पर दांव खेला है।
महानगर अध्यक्ष की घोषणा पर अटकी निगाहें
ग्रामीण अध्यक्ष के नाम की घोषणा के बाद अब सबकी निगाहें शहरी अध्यक्ष के नाम पर टिक गई हैं। पार्टी ने ग्रामीण स्तर पर कार्यकर्ताओं की प्रतिक्रिया जानने के बाद अब नगर अध्यक्ष के लिए नाम तय करने की रणनीति बनाई है।
महानगर में अध्यक्ष के चयन की प्रक्रिया में विलंब इसलिए हो रहा है क्योंकि शहरी राजनीति में असंतोष का असर तुरंत सार्वजनिक हो जाता है। शहर के असंतुष्ट कार्यकर्ता न केवल तुरंत प्रतिक्रिया देते हैं, बल्कि यह असंतोष अक्सर सोशल मीडिया और सड़क तक पहुंच जाता है।
विलंब की वजह: रायशुमारी और संतुलन साधने की कोशिश
सूत्र बताते हैं कि पार्टी विगत घटनाओं से सीखते हुए इस बार बेहद सतर्क है। रायशुमारी की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है, लेकिन अंतिम नाम की घोषणा में देरी इसलिए हो रही है ताकि पार्टी किसी भी संभावित विवाद से बच सके। शहरी अध्यक्ष के चयन में जातीय संतुलन, गुटीय राजनीति, और कार्यकर्ताओं के बीच सामंजस्य बैठाना पार्टी के लिए बड़ी चुनौती बन गया है।
भाजपा की रणनीति: संतुलन और स्वीकार्यता पर जोर
भाजपा ने ग्रामीण और शहरी राजनीति में संतुलन साधने के लिए यह रणनीति अपनाई है। ग्रामीण क्षेत्रों में पटेल समाज के प्रभाव को देखते हुए पार्टी ने कुर्मी समाज से राजकुमार पटेल को चुना। अब शहरी क्षेत्रों में ऐसा चेहरा चुना जाएगा जो कार्यकर्ताओं और गुटों के बीच स्वीकार्य हो।
महानगर अध्यक्ष के नाम का इंतजार क्यों?
महानगर अध्यक्ष की घोषणा पार्टी के लिए अत्यंत संवेदनशील मामला है। शहरी क्षेत्रों में भाजपा की सशक्त उपस्थिति है, लेकिन गुटबाजी भी उतनी ही गहरी है। ऐसे में, पार्टी कोई भी फैसला जल्दबाजी में नहीं लेना चाहती।
पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि शहरी अध्यक्ष की घोषणा भी ग्रामीण अध्यक्ष की तरह ही सार्वजनिक रूप से की जाएगी, ताकि कार्यकर्ताओं को विश्वास में लिया जा सके।
पार्टी की ओर से संकेत मिले हैं अब महानगर अध्यक्ष की घोषणा जल्दी ही हो सकती है। हालांकि, यह देखना दिलचस्प होगा कि पार्टी शहरी राजनीति में किसे अपना अगला ‘राजकुमार’ बनाती है।