दैनिक सांध्य बन्धु जबलपुर। रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय (रादुविवि) के ऐतिहासिक नाम पर बना विश्वविद्यालय आज शह-मात की राजनीति का वो अखाड़ा बन चुका है, जहां दो गुट और उन दो गुटों के अंदर मौजूद चार-चार गुट मिलकर एक-दूसरे को हराने और नीचा दिखाने के खेल में शिक्षा और विस्तार के सारे कार्य भूल चुके हैं। कभी कुलसचिव को प्रभावित करने के लिए पूर्व कुलपति की फाइलें खुलती हैं, तो कभी वर्तमान कुलगुरु को प्रभावित करने वाले आरोपों की झड़ी लगती है। हद यह है कि अब बाकायदा विश्वविद्यालय के कर्मचारी इसे खेल के रूप में लेने लगे हैं और स्कोर के तौर पर काउंट भी कर रहे हैं कि अब कौन आगे है और कौन पीछे... लेकिन इस खेल में अगर कोई बर्बाद हो रहा है, तो वो यहां पढ़ने वाले छात्र हैं और विश्वविद्यालय का भविष्य है।
ईसी बनाम ईसी शुरु
गुरुवार को रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय (रादुविवि) कार्य परिषद (ईसी) की बैठक में कई महत्वपूर्ण फैसले लिए गए। इस बैठक में यह पहली बार देखा गया कि पूर्व कार्य परिषद और कुलगुरु द्वारा लिए गए निर्णयों पर सवाल उठाए जा रहे हैं, और कुछ पुराने फैसलों को वर्तमान कार्य परिषद द्वारा बदला गया है।
पूर्व कुलगुरु प्रो. कपिल देवमिश्र के कार्यकाल में फाइनेंस कंट्रोलर और अन्य अधिकारियों को वाहन सुविधा प्रदान करने का निर्णय लिया गया था, जिसे अब वर्तमान कार्य परिषद ने अमान्य कर दिया है। इसके तहत, फाइनेंस कंट्रोलर से वाहन वापस लेने का निर्णय लिया गया।
यहां कुलगुरु की जांच की तैयारी
रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय (रादुविवि) के कुलगुरु प्रो. राजेश वर्मा पर एक महिला अधिकारी द्वारा लगाए गए आरोपों को लेकर राज्य महिला आयोग ने जांच के निर्देश दिए हैं, और यह जांच महिला कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न निवारण, प्रतिषेध एवं प्रतितोष अधिनियम के तहत गठित कमेटी को सौंपी गई है। महिला अधिकारी ने 22 नवंबर 2024 को राज्य महिला आयोग और राजभवन को शिकायत भेजी थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि 21 नवंबर 2024 को कुलगुरु प्रो. वर्मा ने अनुचित आचरण करते हुए अशोभनीय टिप्पणियां और अभद्र इशारे किए, जिससे वह मानसिक रूप से प्रताड़ित महसूस हुईं। लगभग एक माह बाद राज्य महिला आयोग ने इस शिकायत को संज्ञान में लेते हुए जबलपुर कलेक्टर को जांच के निर्देश दिए। इसके बाद जिला प्रशासन ने रादुविवि को पत्र भेजकर आंतरिक समिति से जांच कर रिपोर्ट सौंपने को कहा।
सूत्रों के अनुसार, महिला अधिकारी ने यह भी आरोप लगाया कि इस मामले में समझौते के लिए दबाव डाला जा रहा था, और इसलिए उसने पुन: राज्य महिला आयोग और अन्य संबंधित अधिकारियों को स्मरण पत्र भेजे थे। महिला अधिकारी का कहना था कि 21 नवंबर को कुलगुरु ने उनके अधीनस्थों के सामने अनुचित व्यवहार किया, जो सीसीटीवी में रिकॉर्ड हो गया, और इसके बाद उन्होंने सार्वजनिक रूप से उनके खिलाफ निराधार आरोप भी लगाए, जबकि उन्हें मालूम था कि परीक्षा तिथि विस्तार का जिम्मा एक अन्य अधिकारी का था।