दैनिक सांध्य बन्धु नई दिल्ली। प्राथमिक शिक्षक भर्ती मामले में मध्यप्रदेश सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा है, जिसमें आरक्षित वर्ग (एससी, एसटी, ओबीसी, ईडब्ल्यूएस) के मेधावी अभ्यर्थियों को उनकी पहली पसंद के जिलों में पोस्टिंग देने के निर्देश दिए गए थे। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की अपील को खारिज करते हुए स्पष्ट कहा कि हाई कोर्ट के आदेश का पालन अनिवार्य है।
23 अक्टूबर 2024 को जबलपुर हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया था कि जो आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थी मेरिट के आधार पर अनारक्षित श्रेणी में चयनित हुए हैं, उन्हें उनकी च्वाइस के अनुसार स्कूलों में वरीयता दी जाए। कोर्ट ने दो टूक कहा था कि "राज्य सरकार मेरिट को डी-मेरिट में नहीं बदल सकती।"
यह मामला वंदना विश्वकर्मा (जबलपुर), सौरभ सिंह ठाकुर (विदिशा), सोनू परिहार (शिवपुरी), रोहित चौधरी (देवास) सहित दो दर्जन से अधिक अभ्यर्थियों की याचिकाओं से जुड़ा था। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर और विनायक प्रसाद शाह ने कोर्ट में दलील दी थी कि प्राथमिक शिक्षक भर्ती 2020-23 के दौरान आरक्षित वर्ग के कई टॉपर्स को अनारक्षित वर्ग में दिखाकर ट्रायबल वेलफेयर डिपार्टमेंट के स्कूलों में भेजा गया, जबकि उनकी पसंद की सूची में इन स्कूलों का कोई उल्लेख नहीं था।
हाई कोर्ट के आदेश का पालन न करने पर डीपीआई कमिश्नर शिल्पा गुप्ता के खिलाफ अवमानना याचिका दायर की गई थी। जब समय पर अनुपालन प्रतिवेदन प्रस्तुत नहीं हुआ, तो हाई कोर्ट ने उनके खिलाफ वारंट जारी कर दिया। सरकार ने राहत के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, मगर वहां भी उसे निराशा हाथ लगी। अब सरकार को हाई कोर्ट के आदेश का पालन करना ही होगा।