दैनिक सांध्य बन्धु जबलपुर। फर्जी दस्तावेजों से आदिवासियों की जमीन हड़पने के मामले में फरार चल रहे पत्रकार गंगा पाठक और उनके चार सहयोगियों को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट से बड़ा झटका लगा है। न्यायमूर्ति विशाल मिश्रा की एकलपीठ ने गुरुवार को सभी आरोपियों की अग्रिम जमानत याचिकाएं खारिज करते हुए स्पष्ट निर्देश दिया कि जब तक आरोपी सरेंडर नहीं करते, तब तक उनकी नियमित जमानत अर्जी पर भी विचार नहीं किया जाएगा।
गौरतलब है कि पत्रकार गंगा पाठक, उनकी पत्नी ममता पाठक, संजीव श्रीवास्तव और ओमप्रकाश त्रिपाठी ने गिरफ्तारी से बचने के लिए अग्रिम जमानत याचिकाएं दायर की थीं। इस पर 26 मई को सुनवाई पूरी होने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया गया था, जिसे गुरुवार को सुनाया गया।
गंगा पाठक व उनकी पत्नी ममता पाठक सहित अन्य आरोपियों पर आदिवासियों की जमीनों की धोखाधड़ीपूर्वक खरीद-फरोख्त का आरोप है। 12 मार्च को जबलपुर के तिलवारा और बरगी थानों में इनके खिलाफ केस दर्ज हुआ था। तभी से सभी आरोपी फरार चल रहे थे।
हाईकोर्ट ने कहा कि यह संपूर्ण फर्जीवाड़ा पूर्व नियोजित साजिश के तहत किया गया। न तो कलेक्टर की अनुमति ली गई और न ही वैध दस्तावेज प्रस्तुत किए गए। फर्जी भू-अधिकार पत्र, ऋण पुस्तिका, आधार कार्ड और दस्तावेज तैयार कर, मृत व्यक्तियों के नाम से जमीन की रजिस्ट्री करवाई गई।
कोर्ट ने यह भी पाया कि जिन व्यक्तियों की जमीन की रजिस्ट्री की गई, वे रजिस्ट्री के पहले ही मर चुके थे। उदाहरण के लिए, एक जमीन 20 मार्च 2020 को सरजू के नाम से रजिस्टर्ड की गई, जबकि सरजू की मृत्यु 5 जुलाई 2014 को हो चुकी थी। इसी तरह कल्लो बाई की भी मृत्यु रजिस्ट्री से पहले हो चुकी थी।
सरकारी वकील अच्युतेन्द्र सिंह बघेल ने तर्क दिया कि एक अन्य रजिस्ट्री 10 जुलाई 2023 को प्रदीप चौहान द्वारा ममता पाठक के नाम की गई थी, जबकि रजिस्ट्री के समय प्रदीप विदेश में था। ऐसे में वह उपस्थित हुए बिना रजिस्ट्री कैसे संभव हो सकती है?
पीड़ित आदिवासियों की ओर से अधिवक्ता शैलेन्द्र वर्मा ने कोर्ट में कहा कि गंगा पाठक के खिलाफ ब्लैकमेलिंग की कई शिकायतें पहले से पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज हैं। कुल 27 मामलों में 27 आदिवासियों की जमीनों का फर्जीवाड़ा किए जाने के आरोप हैं।
हाईकोर्ट ने सभी तथ्यों को गंभीर मानते हुए कहा कि इस प्रकार के संगठित अपराध में संलिप्त आरोपियों को अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती। जब तक आरोपी कोर्ट में समर्पण नहीं करते, तब तक नियमित जमानत पर भी कोई विचार नहीं किया जाएगा।