दैनिक सांध्य बन्धु नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को भगवान जगन्नाथ की वार्षिक रथयात्रा के अवसर पर देशवासियों को शुभकामनाएं दीं और इसे भारत की आस्था, एकता और सांस्कृतिक विविधता का अनुपम प्रतीक बताया। सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर साझा किए गए अपने वीडियो संदेश में उन्होंने रथयात्रा की विशिष्टता और इसकी सामाजिक समरसता की भावना को रेखांकित किया।
प्रधानमंत्री ने कहा, “भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के पावन अवसर पर सभी देशवासियों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं। श्रद्धा और भक्ति का यह पवित्र पर्व हर किसी के जीवन में सुख, समृद्धि, सौभाग्य और उत्तम स्वास्थ्य लेकर आए। जय जगन्नाथ!”
अपने संदेश में प्रधानमंत्री ने कहा कि “महाप्रभु हमारे लिए अराध्य भी हैं और प्रेरणा भी। जगन्नाथ हैं, तो जीवन है। रथयात्रा केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि यह भारतीय संस्कृति की जीवंत अभिव्यक्ति है, जिसमें जन-जन की आस्था और सहभागिता झलकती है।”
उन्होंने ओडिशा के पुरी में निकाली जा रही रथयात्रा को "अद्भुत" बताते हुए कहा कि यह उत्सव देशभर में आस्था और उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। “पुरी की यात्रा हो या देश के अन्य राज्यों की रथयात्राएं — हर जगह समाज के हर वर्ग, हर समुदाय की भागीदारी इसे ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ का सुंदर उदाहरण बनाती है।”
पीएम मोदी ने अपने एक अन्य पोस्ट में 'आषाढ़ी बीज' के खास अवसर पर विश्वभर के कच्छी समुदाय को भी शुभकामनाएं दीं। उन्होंने लिखा, “आषाढ़ी बीज के विशेष अवसर पर दुनिया भर के कच्छी समुदाय को शुभकामनाएं। आने वाला वर्ष सभी के लिए शांति, समृद्धि और उत्तम स्वास्थ्य लेकर आए।”
पुरी की रथयात्रा: 12 दिन तक चलने वाला महापर्व
हर वर्ष की भांति इस बार भी देशभर में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा धूमधाम से निकाली जा रही है, लेकिन ओडिशा के पुरी की यात्रा को विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व प्राप्त है। यहां यह यात्रा श्रीमंदिर से प्रारंभ होकर गुंडिचा मंदिर तक जाती है, जो भगवान की मौसी का घर माना जाता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान जगन्नाथ साल में एक बार अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ गुंडिचा मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं। इस यात्रा की शुरुआत रथ खींचने की परंपरा से होती है, जिसमें लाखों श्रद्धालु शामिल होकर धर्म और भक्ति का अद्भुत संगम प्रस्तुत करते हैं।
यह यात्रा 12 दिनों तक चलेगी और 15 जुलाई को 'नीलाद्रि विजय' के साथ संपन्न होगी, जब भगवान अपने मूल मंदिर में लौटेंगे। इस दौरान अनेक धार्मिक अनुष्ठान संपन्न किए जाते हैं और देश-दुनिया से श्रद्धालु पुरी पहुंचकर इस दिव्य यात्रा के साक्षी बनते हैं।