ओबीसी आरक्षण पर सुप्रीम सुनवाई : एमपी-छत्तीसगढ़ में 58% आरक्षण लागू न होने पर दलीलें होंगी तेज़

 



जबलपुर/नई दिल्ली।देश के लाखों ओबीसी, एससी और एसटी अभ्यर्थियों की निगाहें  22 जुलाई को भारत के सर्वोच्च न्यायालय में ओबीसी आरक्षण से जुड़े अहम मामलों पर सुनवाई होनी है। यह सुनवाई खास तौर पर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में 58% आरक्षण लागू न किए जाने को लेकर बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है।

ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन ने दायर की याचिकाएं
ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन की ओर से दाखिल अंतरिम आवेदनों के साथ-साथ होल्ड किए गए हजारों अभ्यर्थियों की ओर से भी याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं। कोर्ट नंबर 7 में आज तीन जजों की पीठ इन सभी याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करेगी। इस बीच सरकार की ओर से स्टे वेकेटिंग की अर्ज़ी दाखिल की गई है, जिससे सुनवाई और अधिक महत्वपूर्ण हो गई है।

छत्तीसगढ़ सरकार का आदेश रद्द, फिर भी सुप्रीम कोर्ट से मिला अंतरिम राहत आदेश
गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल सरकार ने आरक्षण सीमा बढ़ाकर 58% कर दी थी, जिसे बिलासपुर हाई कोर्ट ने रद्द कर दिया। इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की गई, और कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश पर स्थगन (स्टे) देते हुए 58% आरक्षण को अंतरिम रूप से लागू रखने का आदेश दिया था। बावजूद इसके, सरकार बदलने के बाद भाजपा सरकार ने इसे लागू नहीं किया, जिस पर अवमानना याचिकाएं दाखिल की गई हैं।

मध्य प्रदेश में भी 27% ओबीसी आरक्षण अटका, सिर्फ 14% पर नियुक्ति
मध्य प्रदेश में पूर्ववर्ती कमलनाथ सरकार द्वारा लागू किए गए 27% ओबीसी आरक्षण पर भी असमंजस की स्थिति बनी हुई है। हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट से कोई स्थगन नहीं होने के बावजूद वर्तमान सरकार 27% आरक्षण लागू नहीं कर रही। विज्ञापनों में 27% आरक्षण दर्शाया जाता है, लेकिन नियुक्तियां महज 14% पर हो रही हैं, जबकि शेष 13% पदों को होल्ड किया गया है।

कानूनी पेचीदगियों में फंसा सामाजिक न्याय का मुद्दा
ओबीसी अभ्यर्थियों की ओर से दाखिल याचिकाओं में यह मांग की गई है कि सरकार जिन पुराने अंतरिम आदेशों का हवाला देकर आरक्षण नहीं लागू कर रही है, उन्हें रद्द किया जाए। इसके लिए हस्तक्षेप याचिकाएं और स्टे वेकेटिंग आवेदन दाखिल किए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने मौखिक उल्लेख (oral mention) के बाद इन सभी याचिकाओं को 22 जुलाई की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है।

लाखों अभ्यर्थियों के भविष्य का सवाल
सुनवाई के परिणाम पर न केवल न्याय व्यवस्था की दिशा निर्भर करेगी, बल्कि ओबीसी, एससी और एसटी वर्ग के लाखों छात्रों और बेरोजगार युवाओं के भविष्य की राह भी इसी से तय होगी। यह मामला सिर्फ एक कानूनी लड़ाई नहीं, सामाजिक न्याय की मूल आत्मा से भी जुड़ा है।

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