सील बंद शराब की बोतल में निकली मरी हुई मकड़ी, उपभोक्ता की सेहत से खिलवाड़ या सिस्टम की नाकामी?



राजनांदगांव, छत्तीसगढ़।राज्य की सरकारी शराब वितरण प्रणाली एक बार फिर सवालों के घेरे में है। राजनांदगांव जिले के छुरिया क्षेत्र स्थित ग्राम गैदाटोला में एक शराब उपभोक्ता को उस समय हैरानी और घृणा का सामना करना पड़ा, जब उसने शासकीय शराब दुकान से खरीदी गई ‘शोले’ ब्रांड की देशी शराब की सील बंद बोतल में एक मरी हुई मकड़ी का टुकड़ा तैरता हुआ देखा।

बोतल पूरी तरह से सील बंद थी, यानी यह गड़बड़ी बिक्री से पहले ही, बॉटलिंग के स्तर पर हुई। इससे न सिर्फ स्थानीय उपभोक्ताओं में आक्रोश फैल गया, बल्कि सरकारी मदिरा वितरण और गुणवत्ता नियंत्रण प्रणाली पर गंभीर सवाल भी खड़े हो गए हैं।

मामले की जानकारी जब संबंधित शासकीय शराब दुकान के कर्मचारियों को दी गई, तो उन्होंने इसे महज ‘मानव त्रुटि’ कहकर पल्ला झाड़ने की कोशिश की। बोतल बदलने का प्रस्ताव जरूर दिया गया, लेकिन यह तात्कालिक समाधान उस बड़े सवाल का जवाब नहीं था  आखिर एक सील बंद बोतल में इस तरह की वस्तु कैसे पहुंची?

क्या बॉटलिंग प्लांट में गुणवत्ता नियंत्रण की कोई व्यवस्था नहीं है? क्या संबंधित अधिकारियों की जिम्मेदारी केवल शराब बेचने तक सीमित है? और सबसे अहम, क्या उपभोक्ताओं की सेहत से इस तरह खिलवाड़ करना प्रशासन की नजर में कोई गंभीर अपराध नहीं है?

सेहत पर खतरा और सिस्टम पर दाग

मदिरा उपभोक्ताओं और जागरूक नागरिकों ने इस घटना को अत्यंत गंभीर मानते हुए आबकारी विभाग से उच्चस्तरीय जांच की मांग की है। उनका कहना है कि यह मामला सिर्फ एक बोतल का नहीं, बल्कि पूरी प्रणाली की विश्वसनीयता का है। यदि एक सील पैक बोतल में मरी हुई मकड़ी हो सकती है, तो कौन कहे कि बाकी बोतलें सुरक्षित हैं?

जिम्मेदारों पर कार्रवाई की मांग

स्थानीय लोगों ने स्पष्ट कहा है कि सिर्फ बोतल बदलने से यह मामला समाप्त नहीं हो सकता। वे मांग कर रहे हैं कि:

  • संबंधित ब्रांड की सप्लाई को तत्काल प्रभाव से रोका जाए।

  • बॉटलिंग प्लांट की जांच कर दोषियों पर कठोर कार्रवाई की जाए।

  • जिस दुकान से शराब बेची गई, वहां के कर्मचारियों और जिम्मेदार अधिकारियों को निलंबित किया जाए।

  • आबकारी विभाग की कार्यप्रणाली की स्वतंत्र जांच कराई जाए।

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