दैनिक सांध्य बन्धु जबलपुर। मध्यप्रदेश में शिक्षकों को पदोन्नति देने का मामला एक बार फिर विवादों में आ गया है। जबलपुर जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय द्वारा हाल ही में जारी की गई प्रमोशन सूची में कुल 27 शिक्षकों के नाम हैं, लेकिन इनमें से कुछ को तय नियमों से पहले ही प्रमोशन दे दिया गया है। नियमानुसार शिक्षक को 12 वर्ष की सेवा पूर्ण होने के बाद ही पदोन्नति दी जाती है, जबकि सूची में एक शिक्षक को 10 वर्ष और दो शिक्षकों को 11 वर्ष की सेवा के भीतर ही पदोन्नति का लाभ दे दिया गया है।
इस अनियमितता को लेकर कई शिक्षकों ने आपत्ति दर्ज कराई है और मांग की है कि सूची की पुनः जांच की जाए और वास्तविक हकदारों को ही प्रमोशन का लाभ मिले। वहीं जिला शिक्षा अधिकारी घनश्याम सोनी का कहना है कि पदोन्नति पूर्णतः सेवा दस्तावेजों के आधार पर दी गई है। यदि किसी स्तर पर नियमों का उल्लंघन हुआ है तो उसकी जांच कर संबंधितों पर कार्रवाई की जाएगी।
इस बीच राज्य शासन ने सहायक शिक्षक एवं उच्च श्रेणी शिक्षक की तरह स्कूल शिक्षा विभाग के प्राथमिक व माध्यमिक संवर्ग के शिक्षकों को भी पदोन्नति वेतनमान योजना में शामिल किया है।
इधर, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने पदोन्नत प्रोफेसरों को एजीपी (Academic Grade Pay) के भुगतान को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। न्यायमूर्ति विवेक जैन की एकलपीठ ने राज्य शासन को निर्देश दिए हैं कि वे पदोन्नत प्रोफेसरों को एजीपी का भुगतान तीन किस्तों में करें। कोर्ट ने कहा कि पहली किस्त दिसंबर 2025, दूसरी किस्त जुलाई 2026 और तीसरी किस्त जुलाई 2027 तक दी जाए।
यह याचिका प्रांतीय शासकीय महाविद्यालयीन प्राध्यापक संघ भोपाल की ओर से दायर की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि सरकार सीधी भर्ती से नियुक्त प्रोफेसरों और पदोन्नत प्रोफेसरों के बीच भेदभाव कर रही है। कोर्ट ने यह भेदभाव अनुचित मानते हुए निर्देश दिए कि यदि तय समयावधि में भुगतान नहीं होता है तो प्रोफेसरों को छह प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ राशि दी जाए।
राज्य शासन पूर्व में हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी एजीपी का भुगतान नहीं कर रहा था, जिसके चलते यह मामला एक बार फिर अदालत में पहुंचा। कोर्ट के इस फैसले से पदोन्नत प्रोफेसरों को बड़ी राहत मिली है और शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े हो गए हैं।
अगर लाभ मिल गया तो बुरा क्या है
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