दैनिक संध्या बन्धु भोपाल। 30 अप्रैल को कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए रामनिवास रावत ने 8 जुलाई को कैबिनेट मंत्री के रूप में शपथ ली। रावत, डॉ. मोहन यादव सरकार में 31वें मंत्री बने। उनके मंत्री बनने के बाद भाजपा के वरिष्ठ नेताओं में नाराजगी फैल गई है। पूर्व मंत्री अजय विश्नोई ने खुलकर अपनी नाराजगी जाहिर की है।
विश्नोई ने कहा कि ‘वो’ शर्तों के साथ ही भाजपा में शामिल होते हैं जबकि हम समर्पण भाव से काम करने वाले नेता हैं। बाकी नेता खुलकर प्रतिक्रिया नहीं दे रहे हैं। सबसे सीनियर विधायक और पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव ने कहा कि यह पार्टी का फैसला है, लेकिन वे खुलकर बोलते हैं तो उनका नुकसान हो जाता है।
2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ जो नेता बीजेपी में शामिल हुए थे, उन्हें भी मंत्री और राज्यमंत्री बनाया गया था। तब भी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने नाराजगी जाहिर की थी। उस समय पार्टी ने यह कहकर समझाइश दी थी कि चौथी बार सरकार बनाने में इन नेताओं का अहम योगदान रहा है।
अब नेताओं का कहना है कि इस बार सरकार बनाने की मजबूरी नहीं है, तो रावत को मंत्री क्यों बनाया गया? कुछ नेता इसे मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार बता रहे हैं और कह रहे हैं कि पार्टी में कोई नाराजगी नहीं है।
विश्नोई ने कहा- पार्टी ने रावत को मंत्री बनाकर इनाम दिया है
पाटन से वरिष्ठ विधायक अजय विश्नोई ने कहा कि पार्टी ने रावत को मंत्री बनाकर इनाम दिया है और उनकी उपयोगिता को समझा है। जब पूछा गया कि पहली बार विधायक बने लोगों को भी मंत्री बनाया गया और सीनियर नेताओं को नहीं, तो उन्होंने कहा कि पार्टी में पुरानी पीढ़ी को विदा करके नई पीढ़ी को लाने की परंपरा है।
वरिष्ठ विधायक गोपाल भार्गव ने कहा कि भाजपा में मंत्री बनाने का निर्णय शीर्ष नेतृत्व तय करता है। भार्गव 2003 से 2023 तक लगातार मंत्री रहे हैं, लेकिन इस बार मोहन यादव की कैबिनेट में उनका नाम नहीं है। उन्होंने कहा कि वे पार्टी लाइन को नहीं छोड़ना चाहते और खुलकर बोलने से नुकसान होता है।
रामनिवास रावत के मंत्री बनाए जाने के बाद कांग्रेस ने आरोप लगाया कि बीजेपी में सीनियर नेताओं की अनदेखी हो रही है। कांग्रेस नेता केके मिश्रा ने कहा कि बीजेपी में गोपाल भार्गव और अजय विश्नोई जैसे वरिष्ठ नेता हैं, जो अपनी बात खुलकर कहते हैं।
सरकार ने राज्यपाल को धोखा देकर शपथ दिलाई: कांग्रेस
कांग्रेस ने यह भी आरोप लगाया कि रावत ने विधायक पद से इस्तीफा दिए बिना मंत्री पद की शपथ ली। के के मिश्रा ने कहा कि रावत ने 5 जुलाई को विधायक पद से इस्तीफा दिया था, लेकिन यह बात पब्लिक डोमेन में नहीं आई थी।
कांग्रेस नेता विवेक तन्खा ने सोशल मीडिया पर लिखा कि रामनिवास रावत को कांग्रेस से निर्वाचित विधायक पद से पहले इस्तीफा देकर मंत्री बनना चाहिए था। इस पर रावत ने कहा कि उन्होंने 5 जुलाई को विधानसभा सचिवालय को अपना इस्तीफा भेज दिया था।
6 माह में फिर जीतना होगा विधानसभा चुनाव
जानकारों का कहना है कि रावत का कांग्रेस से मोह भंग 2018 में विधानसभा चुनाव हारने के बाद शुरू हो गया था। वे विजयपुर विधानसभा सीट से बीजेपी प्रत्याशी को 35 हजार वोट की लीड दिलाने में सफल रहे। अब उन्हें 6 महीने के भीतर विजयपुर सीट से चुनाव जीतना होगा।
मध्यप्रदेश के इतिहास में यह पहली बार हुआ जब किसी विधायक को 15 मिनट के अंदर दो बार मंत्री पद की शपथ दिलाई गई। इसका कारण था कि शपथ लेते समय वे कांग्रेस से विधायक थे और शपथ के बाद उन्होंने विधायकी से इस्तीफा दे दिया।