नर्मदा प्राकट्योत्सव विशेष: आस्था के अतिरेक से बचें...

नीरजा बाजपेयी चिंतक। आज नर्मदा जयंती है, नर्मदा पुराण और आद्य शंकराचार्य रचित नर्मदाष्टक इस पावन सलिला के महात्म्य को प्रतिपादित करते हैं। उत्तर भारत की अधिकतर सरिताओं के प्रदूषित होने के बाद भी नर्मदा अभी भी तुलनात्मक दृष्टि से बेहतर है तथा प्राकृतिक प्रकोपों के बाद भी सदानीरा है । 

सौभाग्यवश में इसके तट पर बसे जबलपुर नगर में रहती हूं इस कारण इसके दिव्य सान्निध्य का अवसर मुझे प्राप्त होता रहता है । लेकिन ये देखकर दुख होता है कि आस्था के अतिरेक से प्रकृति की इस अनमोल और सौन्दर्यमयी देन को क्षति पहुंचने का सिलसिला प्रारम्भ हो चुका है । नर्मदा भक्तों की बढ़ती संख्या जहां समाज की सात्विकता का परिचायक है वहीं उसकी पवित्रता के लिए खतरा भी । 

तमाम प्रयासों के बाद भी श्रद्धा में अनुशासनहीनता कम होने की बजाय बढ़ती जा रही है। आज पवित्र रेवा के चरणों में अपने आदरयुक्त भाव समर्पित करते हुए सभी नर्मदा भक्तों से करबद्ध प्रार्थना है कि जिस तरह हम अपनी जन्मदात्री मां की कुशलता हेतु सदैव चिंतित रहते हैं ठीक उसी तरह नर्मदा मैया की सेवा के साथ उसकी रक्षा हेतु भी सजग हों। वरना पतित पावनी गंगा की तरह नर्मदा भी अपने उद्धार के लिए आंसू बहाने बाध्य हो जाएगी। माँ नर्मदा सबका कल्याण करें यही शुभकामना है।

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