25 जून से शुरू हुआ ऐतिहासिक मिशन
‘एक्सियम मिशन-4’ के तहत शुभांशु 25 जून की दोपहर करीब 12 बजे फ्लोरिडा के केनेडी स्पेस सेंटर से अंतरिक्ष के लिए रवाना हुए थे। खराब मौसम और तकनीकी कारणों के चलते लॉन्चिंग को छह बार टालना पड़ा, लेकिन टीम का उत्साह और तैयारी अडिग रही।
अंततः 26 जून की शाम 4 बजे, जब उनका स्पेसक्राफ्ट ISS से जुड़ा, वह क्षण भारत सहित पूरे वैज्ञानिक समुदाय के लिए गर्व और उल्लास से भरा था।
अंतरिक्ष से आया पहला संदेश – "नमस्कार फ्रॉम स्पेस!"
ISS से जुड़ने के कुछ ही घंटों बाद शुभांशु ने अपना पहला संदेश भेजा –
"नमस्कार फ्रॉम स्पेस! मैं अपने साथी अंतरिक्ष यात्रियों के साथ यहां होना एक अविश्वसनीय अनुभव मानता हूं।"
उन्होंने अपनी शुरुआती अनुभूति साझा करते हुए बताया,
“लॉन्चिंग के समय वैक्यूम की स्थिति थोड़ी असहज थी, लेकिन अब मैं काफी विश्राम कर चुका हूं। यहां सब कुछ नया है – चलना, खाना, सोचना… सब कुछ। मैं एक बच्चे की तरह फिर से सीख रहा हूं।”
अंतरिक्ष में अपने 14 दिवसीय प्रवास के दौरान शुभांशु माइक्रोग्रैविटी यानी सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण की स्थिति में वैज्ञानिक अनुसंधान करेंगे। उनके प्रयोगों में मुख्यतः स्पेस टेक्नोलॉजी, दवा विकास और पर्यावरणीय परीक्षण शामिल हैं। इन अध्ययनों के निष्कर्ष भविष्य में न केवल भारत बल्कि समूची मानवता के लिए उपयोगी साबित हो सकते हैं।
राकेश शर्मा से शुभांशु तक: भारत की अंतरिक्ष गाथा
1984 में राकेश शर्मा ने सोवियत अंतरिक्ष यान से उड़ान भरते हुए "सारे जहां से अच्छा" कहकर भारत को अंतरिक्ष में गौरव दिलाया था। अब शुभांशु शुक्ला ने उस परंपरा को आगे बढ़ाया है। वे भारत की नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा का प्रतीक बनकर उभरे हैं, जो अब केवल चाँद या मंगल ही नहीं, बल्कि पूरे ब्रह्मांड को लक्ष्य मान रही है।
भारत की वैश्विक वैज्ञानिक भागीदारी का प्रतीक
शुभांशु की यह ऐतिहासिक यात्रा केवल एक व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं, बल्कि भारत के वैज्ञानिक सामर्थ्य और वैश्विक अंतरिक्ष अनुसंधान में भागीदारी का जीवंत प्रमाण है। यह क्षण भारत के लिए गर्व का है एक ऐसा गर्व जो सीमाओं से परे, आकाश से भी ऊंचा है।
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