Jabalpur News: कैंट बोर्ड में मेंबर चुनाव नहीं होंगे, रक्षा मंत्रालय ने फिर दोहराया निर्णय, राजनीतिक कार्यकर्ताओं में मायूसी

 

दैनिक सांध्य बन्धु जबलपुर। लंबे समय से अटके कैंट बोर्ड मेंबर्स (वार्ड पार्षदों) के चुनाव अब नहीं होंगे। रक्षा मंत्रालय ने संसद में स्पष्ट कर दिया है कि सिविल एरिया को निकायों में विलय की प्रक्रिया के चलते चुनाव कराना फिलहाल संभव नहीं है। इससे जबलपुर समेत देशभर के कैंट इलाकों में राजनीति कर रहे दलों और नेताओं में मायूसी फैल गई है।

दरअसल, बीते कुछ महीनों से अटकलें लगाई जा रही थीं कि रक्षा मंत्रालय कैंट बोर्ड के वार्ड पार्षदों का चुनाव कराने की दिशा में विचार कर रहा है। इसके संकेत भी मिलने लगे थे, जिसके चलते जबलपुर कैंट क्षेत्र में राजनीतिक गतिविधियां बढ़ने लगी थीं। लेकिन हाल ही में अंबाला से कांग्रेस सांसद वरुण चौधरी द्वारा पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में रक्षा राज्य मंत्री संजय सेठ ने यह साफ किया कि कैंट के सिविल क्षेत्रों को नजदीकी नगरीय निकायों में विलय करने की प्रक्रिया चल रही है। ऐसे में चुनाव प्रक्रिया उस विलय को प्रभावित कर सकती है, इसलिए चुनाव कराना संभव नहीं होगा।

चार साल से टल रहे चुनाव, नामित मेंबर्स की भी नहीं हुई नियुक्ति

पूर्व कैंट बोर्ड उपाध्यक्ष अभिषेक चौकसे ने इस स्थिति पर नाराज़गी जताते हुए कहा कि देशभर में कैंट क्षेत्र की जनता की समस्याएं सुनने के लिए नामित मेंबर्स की नियुक्ति की गई है, लेकिन जबलपुर कैंट में अब तक यह प्रक्रिया भी पूरी नहीं की गई है। नतीजतन, यहां के नागरिकों को अपनी छोटी-छोटी समस्याओं के लिए अधिकारियों के चक्कर लगाने पड़ते हैं।

उनका कहना है कि अगर चुनाव नहीं कराने हैं तो कम से कम विलय की प्रक्रिया को ही तेज किया जाए ताकि जनता को प्रतिनिधित्व मिल सके।

अदालत में लंबित है याचिका

गौरतलब है कि जबलपुर कैंट बोर्ड के चुनाव 10 फरवरी 2020 को पूर्ण हुए थे और तभी से अब तक नए चुनाव नहीं कराए गए हैं। एक बार रक्षा मंत्रालय ने चुनाव की घोषणा की थी लेकिन उसे बीच में ही स्थगित करना पड़ा।

इस मुद्दे पर कैंट बोर्ड के पूर्व मेंबर अमरचंद बावरिया ने एमपी हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल कर रखी है, जो अब तक लंबित है। अमरचंद का कहना है कि रक्षा मंत्रालय को या तो स्पष्ट रूप से विलय करना चाहिए या फिर तुरंत चुनाव कराना चाहिए। चार साल से अधिक समय बीत जाने के बाद भी सिविल जनता बिना किसी निर्वाचित प्रतिनिधि के रह रही है और प्रशासनिक फैसले एकतरफा लिए जा रहे हैं।

लोकतंत्र के नाम पर मज़ाक!

कैंट क्षेत्र में रहने वाले नागरिकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि सिविल क्षेत्र में न तो चुने हुए प्रतिनिधि हैं, न ही जवाबदेही। अधिकारियों की मनमानी बढ़ गई है। नालियों की सफाई से लेकर सड़क और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए लोग भटकते रहते हैं। ऐसे में चुनाव न कराना लोकतंत्र के नाम पर सीधा अन्याय है।

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