दैनिक सांध्य बन्धु उज्जैन। देश के प्रतिष्ठित महाकालेश्वर मंदिर एक बार फिर वीआईपी कल्चर की भेंट चढ़ता नजर आया। ताजा मामला बीजेपी विधायक गोलू शुक्ला के बेटे रूद्राक्ष शुक्ला से जुड़ा है, जिस पर मंदिर के गर्भगृह में जबरन प्रवेश करने और कर्मचारियों को धमकाने के गंभीर आरोप लगे हैं।
घटना सोमवार तड़के करीब ढाई बजे की है, जब इंदौर-3 से बीजेपी विधायक गोलू शुक्ला अपनी कांवड़ यात्रा के साथ महाकाल मंदिर पहुंचे। उनके साथ उनका बेटा रूद्राक्ष भी मौजूद था। मंदिर समिति के मुताबिक विधायक को गर्भगृह में प्रवेश की अनुमति दी गई थी, लेकिन उनके बेटे को नहीं।
घटना सोमवार तड़के करीब ढाई बजे की है, जब इंदौर-3 से बीजेपी विधायक गोलू शुक्ला अपनी कांवड़ यात्रा के साथ महाकाल मंदिर पहुंचे। उनके साथ उनका बेटा रूद्राक्ष भी मौजूद था। मंदिर समिति के मुताबिक विधायक को गर्भगृह में प्रवेश की अनुमति दी गई थी, लेकिन उनके बेटे को नहीं।
प्रत्यक्षदर्शियों और मंदिर कर्मचारियों के अनुसार, रूद्राक्ष ने जबरन गर्भगृह में प्रवेश की कोशिश की और जब सुरक्षा कर्मियों ने रोका, तो उन्होंने उन्हें धमकाया और अभद्र भाषा का प्रयोग किया। यह सब उस जगह हुआ जहां सुरक्षा और धार्मिक अनुशासन सर्वोपरि माने जाते हैं।
घटना के बाद विधायक गोलू शुक्ला ने मीडिया से बातचीत में सफाई दी कि "हमें पाँच लोगों की परमिशन दी गई थी। फिर भी रोका गया, ये समझ से परे है। हमने कोई नियम नहीं तोड़ा।" हालांकि मंदिर प्रशासन की ओर से अभी तक इस दावे की पुष्टि नहीं हुई है कि पाँच लोगों को गर्भगृह में जाने की अनुमति दी गई थी या सिर्फ विधायक को। यह पहली बार नहीं है जब रूद्राक्ष शुक्ला का नाम धार्मिक स्थल पर दबंगई और अनुशासनहीनता से जुड़ा हो। इसी साल अप्रैल में उन्होंने देवास स्थित माता टेकरी के पट जबरन खुलवाने की कोशिश की थी। विरोध करने पर पुजारी से मारपीट भी की गई थी। इस मामले में रूद्राक्ष समेत नौ लोगों के खिलाफ केस दर्ज हुआ था।इसके अलावा चार साल पहले रूद्राक्ष ने महाकाल मंदिर के गर्भगृह में जाकर फोटो क्लिक की थी और उसे सोशल मीडिया पर पोस्ट किया था, जबकि नियम के अनुसार न तो गर्भगृह में प्रवेश की इजाजत है और न ही फोटोग्राफी की।
महाकाल मंदिर समिति के स्पष्ट दिशा-निर्देश हैं कि पुजारी के अतिरिक्त कोई भी व्यक्ति गर्भगृह में प्रवेश नहीं कर सकता चाहे वह वीआईपी हो या आम श्रद्धालु। सभी को नंदी मंडप से दर्शन करने होते हैं। यह नियम सुरक्षा और परंपरा दोनों के तहत लागू है।लेकिन बार-बार राजनीतिक रसूख के दम पर इन नियमों की धज्जियां उड़ाना न सिर्फ धार्मिक मर्यादा का उल्लंघन है, बल्कि आम श्रद्धालुओं की आस्था के साथ खिलवाड़ भी है।