संस्कृत की गूंज: एमपी का गांव जहां हिंदी नहीं, संस्कृत है रोज़मर्रा की भाषा


दैनिक सांध्य बन्धु भोपाल। मध्य प्रदेश में आम बोलचाल की भाषा हिंदी है. इसके साथ ही कई सारी स्थानीय बोलियां हैं. इनमें बघेलखंड में बघेली, बुंदेलखंड में बुंदेली, मालवा में मालवी और निमाड़ में निमाड़ी बोली जाती है. इन सबसे अलग राजगढ़ जिले का झिरी गांव अपनी अलग पहचान रखता है. यहां लोग हिंदी में बातचीत नहीं करते बल्कि संस्कृत में बातें करते हैं. स्कूल से लेकर मंदिर और घर से लेकर खेत तक लोग संस्कृत में ही बात करते हैं.

राजगढ़ जिला मुख्यालय से 40 किमी दूर स्थित झिरी गांव में बच्चों से लेकर बूढ़ों तक ग्रामीण फर्राटेदार संस्कृत बोलते हैं. इस गांव की आबादी 1500 से ज्यादा है. बच्चे, महिला, पुरुष, किसान, दुकानदार, नौकरीपेशा समेत सभी लोग संस्कृत बोलते हैं. गांव के स्कूल के पढ़ने वाले बच्चों की शिक्षा का मीडियम भी संस्कृत है. यहां बच्चों को प्राइमरी से ही संस्कृत पढ़ाई जाती है. बच्चे संस्कृत में कहानी कहते हैं, गीत गाते हैं और भाषण भी देते हैं.

झिरी में अभिवादन करने के लिए लोग इंग्लिश के हेलो, हाय, बाय, गुड मॉर्निंग और गुड इवनिंग की जगह नमो-नम: बोलते हैं. गांव में संस्कृत का इतने अच्छे से उपयोग होने के कारण इसे संस्कृत ग्राम का दर्जा मिला हुआ है. इसकी शुरुआत समाज सेविका विमला तिवारी की पहल बाद शुरू हुआ. उनकी इस पहल को सभी ने सहयोग दिया. गांव के सरपंच भी इसे आगे बढ़ाते हैं. ये मध्य प्रदेश का एकमात्र संस्कृत गांव भी है.

सबसे अलग बात ये है कि गांव के घरों की दीवार पर ‘संस्कृत गृहम’ लिखा हुआ है, जिसका मतलब संस्कृत घर है, जहां रहने वाले लोग संस्कृत बोलते हैं. इसके साथ घर, मंदिर, स्कूल और दूसरे भवनों की दीवारों पर संस्कृत भाषा में संदेश लिखे हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि शादी और विवाह के अवसर पर महिलाएं संस्कृत भाषा में ही गीत गाती हैं.

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