Artical : छठ पूजा को मिलेगी वैश्विक पहचान

दैनिक सांध्य बन्धु जबलपुर। संस्कृति, प्रकृति, परम्परा और आस्था की पूजा छठ का प्रारम्भ कल से, इस बार उत्तर भारतीयों के लिए अत्यंत हर्ष का विषय है कि छठ पूजा को यूनेस्कों की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल किया जायेगा जिसके लिए देश के प्रधानमंत्री एवं भारत सरकार प्रयास रथ है। छठ को वैश्विक पहचान मिलने से पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा साथ ही यह भारतीय संस्कृति की महत्वपूर्ण पहचान बन जायेगी।

छठ संस्कृत शब्द षष्ठी से आता हैं जिसका अर्थ छः हैं इसलिए यह त्यौहार चंद्रमा के आरोही चरण के छठें दिन कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है। ये त्यौहार चार दिनों तक चलता है। प्रथम दिवस नहाय-खाय पूरे घर की सफाई, भोजन के रूप में कदू चनें की दाल और चावल ग्रहण किया जाता है। दूसरा दिन खरना यानि दिन भर उपवास के बाद शाम को भोजन, तीसरे दिन मिट्टी के चूल्हें पर छठ प्रसाद बनाया जाता है। शाम को डूबते सूरज को अर्घ्य दिया जाता है। चौथे दिन उदियमान सूर्य को कच्चे दूध के अर्ध्य के साथ पूजा सम्पूर्ण होती है।

त्रग्वेद में छठ पूजा का वर्णन मिलता है महाभारत काल में जब पाण्डवों ने अपना राज पाठ खों दिया था तब उनको बचाने के लिए द्रौपदी ने छठ पूजा की थी, कर्ण घण्टों जल में खड़ा होकर सूर्य उपासना किया करता था, जब राम और सीता 14 वर्ष के बनवास के बाद अयोध्या लौटे तब कार्तित माह में राम और सीता ने यह व्रत किया।

लेखक - डॉ. आशीष कुमार यादव
छठ पूजा को बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ के साथ देश के विभिन्न महानगरों में मनाया जाता है।

विदेशों में भी अमेरिका, आस्ट्रेलिया, दुबई, जर्मनी, मारिशस, सुमात्रा, जावा, त्रिनिदाद समेत कई विदेशी द्वीपों पर मनाया जाता है। यह त्यौहार 15 करोड़ से उपर लोग मनाते है दुनिया भर में।

यह एक मात्र त्यौहार है जहाँ डूबते सूरज को अर्घ्य देने की परम्परा है। इसे देश के सबसे कठिन त्यौहारों में से एक माना जाता है।

✍️ लेखक : डॉ. आशीष कुमार यादव विजिटिंग फैकल्टी राजनीति विज्ञान विभाग, जबलपुर (म.प्र.)

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