दैनिक सांध्य बन्धु भोपाल। मध्य प्रदेश में किसानों को राहत देने के लिए शुरू की गई भावांतर योजना पर अब राजनीतिक बयानबाजी तेज हो गई है। सरकार ने इस योजना के लिए मंडी बोर्ड के जरिए ₹1500 करोड़ का कर्ज लेने का निर्णय लिया है। इसी को लेकर पूर्व केंद्रीय मंत्री और पूर्व पीसीसी चीफ अरुण यादव ने राज्य सरकार पर सीधा हमला बोला है।
उन्होंने कहा कि यह पहली बार है जब किसी स्वायत्त संस्था (ऑटोनॉमस बॉडी) ने कर्ज लेने के लिए टेंडर जारी किया है। इसे उन्होंने “हास्यास्पद और सुपर फ्लॉप योजना” बताया।
अरुण यादव ने कहा कि 1974 में पीसी सेठी ने मंडी बोर्ड का गठन किया था, जिसका उद्देश्य किसानों की उपज के दाम तय करना और मंडियों की व्यवस्था को मजबूत बनाना था। उन्होंने कहा कि “अब वही मंडी बोर्ड, जो किसानों के हित में काम करता था, आज सरकार के लिए कर्ज लेने पर मजबूर है।”
उन्होंने यह भी बताया कि कमलनाथ सरकार के दौरान मंडी बोर्ड का रेवेन्यू ₹8 करोड़ से बढ़ाकर ₹12 करोड़ किया गया था। मगर अब सरकार किसानों को पैसा देने के लिए कर्ज लेने की नौबत में आ गई है, जबकि अभी तक भावांतर योजना के तहत किसी किसान को पैसा नहीं मिला है।
सरकार खुद लोन क्यों नहीं ले रही?
यादव ने सवाल उठाया कि “कृषि विभाग सीधे लोन क्यों नहीं ले रहा?” अगर सरकार किसानों की मदद करना चाहती है तो MSP पर उपज खरीदनी चाहिए। उन्होंने कृषि मंत्री की नोटशीट का हवाला देते हुए कहा कि उसमें साफ लिखा है कि “हम सक्षम नहीं हैं।”
किसानों की हालत पर चिंता जताई
पूर्व मंत्री ने कहा कि मध्य प्रदेश में किसानों की मुश्किलें लगातार बढ़ रही हैं। पिछले 15 सालों से सरकारी संस्थाओं को कमजोर किया जा रहा है, जबकि किसान MSP की मांग को लेकर संघर्ष कर रहे हैं।
उन्होंने कहा – “शिवराज सिंह चौहान अब देश के कृषि मंत्री हैं, लेकिन उनके अपने प्रदेश का किसान सबसे ज्यादा परेशान है। मक्का और सोयाबीन के दाम MSP से काफी नीचे हैं, औसत उत्पादन भी 15 साल में सबसे कम हुआ है।”
सरकारी संस्थाओं को निजी हाथों में सौंपा जा रहा
अरुण यादव ने कहा कि HMT, LIC, BSNL, बीज निगम, तिलहन संघ और मंडी बोर्ड जैसी संस्थाओं को धीरे-धीरे निजी हाथों में सौंपा जा रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार किसानों और सरकारी संस्थाओं को मजबूत करने के बजाय बड़े उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने में लगी है।
